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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. ध्रु अ. २. उ. २ स्व पुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ६१५ अणिहे सहिए सुसंखुडे धम्मट्टी उवहाणवीरिए । विहरेज्ज समाहिहंदीए अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ ३० छायाअनिहः सहितः सुसंवृतः धर्मार्थी उपधानवीर्यः । विहरेत्समाहितेन्द्रियः आत्महितं दुःखेन लभ्यते ॥ ३०॥ अन्वयार्थ:(अणिहे) अनीहः कस्मिन्नपि वस्तुनि स्नेहरहितः (सहिए) सहितः= हितेन ज्ञानचारित्रादिना युक्तः(संवुडे) संवृतः इन्द्रियमनोभ्याम् (धम्मही) धर्मार्थी धर्मप्रयोजनवान् भवेत् तथा (उवहाणवीरिए) उपधानवीर्य-उपधाने उग्रतपसि शब्दार्थ-'अणिहे-अनीहः' साधु पुरुष किसी भी वस्तु में स्नेह न करे ज्ञान चरित्र वाले हितावह काम करे 'संयुडे-संवृतः' इन्द्रिय एवं मनसे गुप्त रहे 'धम्मट्टी-धर्मार्थी' धर्म प्रयोजन वाले बने तथा 'उवहाणवीरिएउपधानवीर्यः' तप में पराक्रम करे ‘समाहिइंदिए-समाहि तेन्द्रियः' इन्द्रियों को नियमन में रखे 'विहरेज-विहरेत्' इस प्रकार से साधु संयम का अनुष्ठान करे क्यों की-'अत्तहिय--आत्महितम्' अपना कल्याण 'दुहेण-- दुःखेन' दुःख से 'लब्भइ--लभ्यते' प्राप्त होता है ॥३०॥ -अन्वयार्थ-- साधु सभी पदार्थों में अनुराग रहित हो, हित अर्थात् ज्ञान और चारित्र से युक्त हो इन्द्रियों और मन से संवरयुक्त हो धर्मार्थी हो तपस्या में उग्र सामर्थ्यवान् हो और अपनी इन्द्रियों को संवर में रख कर विचरे अर्थात् साधु शहाथ-'अणिहे अनीहः साधु ५३५ । ५ वस्तुमा स्नोड ना ४२ 'सहिएसहितः ज्ञान यात्रिय हिताप म ४२ 'संखुडे-संवृतः' छन्द्रिय येवम् भनथी गुप्त २९ 'धम्मट्टी-धर्मार्थी धर्म प्रयोगगन वा मने तथा नवहाणवीरिए-उपधानवीयः तपमा पराभ ४२ 'समाहियइदिए- समाहितेन्द्रियः धन्द्रियाने नियमनमा राणे 'विहरेज--विहरेत् २॥ ४२था साधु सयभनु मनुष्ठान ४२ उभ 'अत्तहिय आत्महितम् पातानु ४८या 'दुहेण-दुःखेन' :मथी 'लभइ-लभ्यते श्रास थाय छे.॥३०॥ સાધુએ સઘળા પદાર્થોમાં અનુરાગરહિત થવું જોઈએ, હિત એટલે કે જ્ઞાન અને ચારિત્રથી યુક્ત થવું જોઈએ, ઇન્દ્રિ અને મનના સંવરથી યુક્ત થવું જોઈએ, ધર્માથી થવુ જોઈએ, તપસ્યામાં ઉગે સામર્થ્ય યુક્ત બનવું જોઈએ અને પોતાની ઇન્દ્રિયને सत्राथ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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