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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु अ. २ उ. २ स्वपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेशः ५८१ स्थानसेवी भवति एतादृशं साधु तीर्थकराः सामयिकः समभावेन वर्तनशील: इति नामाऽभिधानं कृतवन्त इत्यतो न भयभीता भवेयुरिति भावः ॥१७॥ उसिणोदग' इत्यादि । मूलम्उसिणोदगतत्तभोइणो धम्मट्टियस्स मुणिस्स हीमतो संसग्गियासाहुरा असमाही उ तहागयस्सवी ॥१८॥ छायाउष्णोदकतप्तभोजिनो धर्मस्थितस्य मुने हॊमतः । संसर्गोऽसाधूराजभि रसमाधिस्तु तथागतस्यापि ।।१८।। जो स्त्री पशु और पण्डक से रहित स्थान का सेवन करने वाला है, ऐसे साधु को तीर्थकर सामायिक आदि चारित्र वाला कहते हैं अर्थात् ऐसा साधु ही सामायिक चारित्र आदि पाँच प्रकार के चारित्रों का अधिकारी होता है। अतएव साधु को भयभीत नहीं होना चाहिए ॥१७॥ “ उसिणोदग" इत्यादि। शब्दार्थ-'उसिणोदगतत्तभोइणो-उष्णोदकतप्तभोजिनः' विना ठंडा किआ गरम जल पीने वाले 'धम्मडियस्स-धर्मस्थितस्य' श्रुतचारित्र धर्म में स्थित 'हीमतो-हीमतः' असंयममें लज्जित होने वाले 'मुणिस्स-मुनेः' मुनिको 'राइहि-राजभिः राजा आदि से 'संसग्गि-संसर्गः' संसर्ग करना 'असाहु-असाधुः' बुरा है 'तहागयस्स वि-तथागतस्यापि वह संसर्ग शास्त्रोक्त आचार पालने वाले का भी 'असमाही--असमाधिः समाधिका भग करता है।।१८॥ કરનાર છે, એવા સાધુને તીર્થકર ભગવાને સામાયિક આદિ ચારિત્રવાળા કહ્યા છે. એટલે કે એ સાધુ જ સામાયિક ચારિત્ર આદિ પાંચ પ્રકારના ચારિત્રને અધિકારી હોય છે એવું જાણીને સાધુએ ભયભીત થવું જોઈએ નહીં ૧૭ "उसिणोदग" त्याह शा- 'उसिणोदगतत्तभारणो-उष्णोदकतप्तभोजिनः' या पारनु गरम पाणी पावावा 'धम्मढियस्त धर्मस्थितस्य' श्रुतयारित्र धर्ममा स्थित 'हीमतो-हीमतः मसयमथी स थवा 'मुणिस्स-मुनेः भुनिन। 'राइहि-राजभिः' २० वगेश्था 'संलग्गि-संलग:' संसा ४२यो 'असाहु-असाधु' सराय छे. तहागयस्सवि-तथागतस्थापि तेससा शास्त्री मायार पाणवावाणाने पy 'असमाही-असमाधिः' समाधिना ભંગ કરે છે. ૮૫ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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