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________________ सूत्रकृताङ्गको पुनरपि जिनकल्पिकादिमुनिमनुलक्ष्य दर्शयति सूत्राकार:-'णो अभिकखेज इत्यादि। मूलम् णा अभिकंखेज्ज जीवियं नोऽविय पूयणपत्थये सिया अन्भत्थ मुविनि भेरवा सुन्नागारगयस्स भिक्खुणो १६ नाभिकांक्षेत् जीवितं नापि च पूजनप्रार्थकः स्यात् । अभ्यस्ता उपयन्ति भैरवा शून्यागारगतस्य भिक्षोः ॥१५॥ 'उपसर्गत्रयान् यस्तु' इत्यादि । शून्य गृह में स्थित भी शान्त बुद्धिवाला जो मुनि तीनों प्रकार के उपसर्गोंको सहन करता है, रोम आदिको कम्पित न करे ॥१५॥ जिनकल्पी आदि मुनियो को लक्ष्य करके पुनः सूत्रकार कहते हैं-'णो अभिकंखेज' इत्यादि। शव्दार्थ--'जीवियं-जीवितम्' जीवनकी ‘णो अभिकंखेज्ज--नो अभिकांक्षेत् इच्छाकरे नहीं करनी चाहिए 'नोवि य-नापि च और न 'पूयणपत्थए--पूजनप्रार्थकः, सत्कार का अभिलाषी 'सिया--स्यात्' हो सुन्नागारगयस्स-शून्यागारगतस्य' शुन्यगृह में गये हुए 'भिक्खुणो-भिक्षोः साधु को 'भेरवा-भैरवाः' भयानक प्राणी 'अभत्थंअभ्यस्ताः' अभ्यस्त भाव को 'उविति-उपयन्ति' प्राप्त हो जाते हैं॥१६॥ ५४ ४थु छ. 3-“ उपसर्गप्रयान् यस्तु" त्यादि શૂન્ય ઘરમાં સ્થિત (રહેલ) બુદ્ધિમાન સાધુ ત્રણ પ્રકારના ઉપસર્ગોને સહન કરે છે તે ઉપસર્ગોને કારણે તેનું રૂંવાડું પણ ફરકતુ નથી અને ફરકવું જોઈએ પણ નહીં.' છે ગાથા ૧૫ ___fortsley Pा भुनियाने मनुसक्षीने सूत्रा२ ४ छ -“ णो अभिखेज" ઈત્યાદિ शनाथ - 'जीविय-जीवितम्' वननी ‘णो अभिक खेज्ज-ना अभिकांक्षेत्' ५२७। ४२ नड 'नोवि य -नापि च' मने न 'पूयणपत्थर-पूजनार्थकः' सारने। अमिती 'सिया-स्या र डाय सुन्नागारगयस्स-शून्यागारगतस्य' शून्यधरमा गये। 'भिक्खुणोमिक्षो' साधुने 'भेरवा-भैरवाः' भयान ! 'अब्भत्थ-अभ्यस्ताः' मन्यस्त भावने 'उनि ति -उपति ' प्रात थ तय छे. ॥१६॥ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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