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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १ उ.४ अध्ययनोपसहारः अन्वयार्थ:(भिक्खू) भिक्षुः भिक्षयैव निर्वहनशीलः (साहू) साधुः मुनिः (सया) सदा निरन्तरम् (समिए उ) समितस्तु ईर्यासमित्यादियुक्तः तु शब्देन गुप्तियुक्तः तथा (पंचसंवरसंयुडे)पञ्चसंवरसंवृतःप्राणातिपातविरमणादिसंवरपञ्चकयुक्तःसन् (सिएहिं) सितेषु-बद्धेषु गृहादिपाशबद्धेषु गृहस्थेषु इत्यर्थः (असिए) असितः अबद्धः आसक्तिपाशेनानवबद्धः आहारादिषु मूर्छामकुर्वाण इत्यर्थः (आमोक्खाय) आमोक्षाय मोक्षप्राप्तिपर्यन्तं यावन्मोक्षो न स्यात्तावत् (परिधएज्जासि) परिव्रजेत् शब्दार्थ-'भिक्खू-भिक्षुः' भिक्षुक 'साहू-साधुः' मुनी 'सया--सदा' निरन्तर 'समिए उ--समितस्तु' इर्यासमिति में युक्त होकर 'सिएहि-सितेषु' गृहादि पाशमें बद्ध ऐसे गृहस्थों में बद्ध 'असिए--असितः' आसक्तिभावसे अबद्ध होकर अर्थात् आहारमें मूर्छाभाव विना किये 'आमोक्खाय--आमोक्षाय' मोक्षप्राप्ति पर्यन्त 'परिवएज्जासि--परिव्रजेत्' प्रव्रज्या को पालन करें 'त्तिबेमि-इति ब्रवीमि' ऐसा यह कथन जैसा भगवान्से सुना हैं वैसाही कहता हूं ॥१३॥ अन्वयार्थभिक्षा द्वारा ही निर्वाह करने वाला मुनि सदा समितियों और गुप्तियों से युक्त होकर, प्राणातिपातविरमण आदि पांच संवररों से संवृत होकर, गृहपाश में फंसे गृहस्थो के साथ सम्पर्क न रखता हुआ तथा आहारादि में मूर्छा धारण नहीं करता हुआ जब तक मोक्षकी प्राप्ति न हो जाय तब तक दीक्षा ____ --भिक्खू भिक्षुः' भिक्षु “साहू-साधुः' साधु५३५ ( भुनी ) 'सया-सदा' निरन्तर 'समिएउ-समितस्तु या समितिमा युक्त ने 'सिपहि-सितेषु' ५२ वगेरे पाशमा पद्ध सेवा स्थामा 'असिए--असितः' मासात माथी २५५द्ध य ने अर्थात माहारमा भृछाला या १२ 'आमोक्खाय--आमोक्षाय मोक्षप्राप्ति यन्त परिव्वएजासि परिव्रजेत्' प्रवृत्त्यानु पालन ४२ 'त्तिबेमि इति ब्रवीमि' मे मा अयन रे ભગવાનથી સાંભળ્યું છે તેવું જ કહું છું. ૧૩ __ -सूत्रार्थભિક્ષા દ્વારા જ નિર્વાહ કરનાર મુનિએ સદા સમિતિઓ અને ગુણિઓથી યુક્ત થઈને, પ્રાણાતિપાત વિરમણ આદિ પાંચ સંવરથી સંવૃત થઈને, ગૃહપાશમાં ફસાયેલા ગૃહસ્થને સંપર્ક નહીં રાખતા થકા, આહારાદિમાં મૂચ્છભાવને ત્યાગ કરીને, જ્યાં સુધી મેક્ષની પ્રાપ્તિ ન થાય ત્યાં સુધી દીક્ષાનું પાલન કરવું જોઈએ તેણે સંયમના શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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