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________________ समयायार्थ बोधिनी टीका प्र. श्र.अ.१ उ. ४ लोकवादनिरूपणम् चत्वारो लोकसंनिवेशाः” इत्यादिना लोकानां मर्यादादर्शनात् । तथानित्यो लोकः प्रवाहरूपेणाऽद्यापि परिदृश्यमानत्वात् तथा-"अपुत्रस्य गतिर्नास्ति स्वर्गों नैवच नैवच ।" "ब्राह्मणो हि देवता" "श्वानो यक्षाः "इत्यादि । 'इति' इत्येवं (धीरो) धीरोः व्यासादिः। 'अतिपासइ' अतिपश्यति, इत्थंभूतलोकवादं कथयति ।।गा०६॥ "पुनस्तमेव लोकवादं दर्शयति सूत्रकारः-"अपरिमाणं" इत्यादि मूलम् अपरिमाणं वियाणाइ इह मेगेसिमाहियं । सव्वत्थ सपरीमाणं, इति धीरोऽतिपासइ-॥७ छाया"अपरिमाणं विजानाति इहैकेषामाख्यातम् । सर्वत्र परिमाणम् इति धीरोऽतिपश्यति ॥८॥ क्योंकि यह पृथ्वी सातद्वीप तक ही है, लोक तीन हैं। चार लोक संनिवेश हैं, इत्यादि रूप में लोकों की मर्यादा देखी जाती है। तथा लोक नित्य है। क्योंकि प्रवाह रूपसे यह आज भी दिखाई देता है । तथा 'निपूते को शुभगति नहीं मिलती है, स्वर्ग हर्गिज नहीं मिलता है, ब्राह्मण देवता है, कुत्ते यक्ष हैं, इत्यादि सब इस लोकवाद के मन्तव्य हैं। व्यास आदि ने इस प्रकार के लोकवाद का निरूपण किया है ॥६॥ सूत्रकार पुनः लोकवाद को दिखलाते हैं--" अपरिमाणं ' इत्यादि । शब्दार्थ-'अपरिमाणं-अपरिमाणम्' परिमाणरहित अर्थात् अपरिमित पदार्थको 'वियाणाइ-विजानाति' जानता है 'इहं-इह' इस लोकमें 'एगेसिं-एकेषां' किन्हींका 'आहियं-आख्यातम्' कथन है। 'सव्वत्थ-सर्वत्र' सर्व देशकालके અન્તવાન (સીમિત) છે, કારણ કે “આ પૃથ્વી સાત દ્વીપ પર્યન્ત જ વ્યાપ્ત છે, લોક ત્રણ છે, ચાર લેક સંનિવેશ છે.” ઈત્યાદિ રૂપે લેકની મર્યાદા દેખી શકાય છે. તથા લેક નિત્ય છે, કારણ કે પ્રવાહ રૂપે તે આજ પણ વિદ્યમાન છે તથા “અપુત્રને શુભગતિ મળતી નથી, સ્વર્ગ તે હગિજ (સદન્તર) મળતું નથી, બ્રાહ્મણ દેવતા છે, કૂતરા યક્ષે છે, ઈત્યાદિ લોકવાદના જ મન્તવ્ય છે. વ્યાસ આદિએ આ પ્રકારના લકવાદનું નિરૂપણ કર્યું છે. એ ગાથા ૬ सूत्रा२ वाहनु विशेष नि३५९४ ४२ छ-" अपरिमाण" त्याह शहा -- 'अपरिमाण-अपरिमाणम्' परिभाए। २हित अर्थात अपरिमित पाने 'चियाणाइ-विजानाति' तो छ. 'इह-इह' २0ोभा 'एगेसि-एकेषां अध्नु 'आहिय શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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