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________________ २७६ सूत्रकृताङ्गसूत्रे ___ अन्वयार्थः-- (एवं) एवम् उक्तप्रकारेण (एगे) एके केचन नियतिवादिनः 'पासत्था' पार्श्वस्थाः-पार्श्व-मोक्षमार्गबहिर्भागे स्थिताः, अथवा पाशस्था इति कर्मबन्धरूपपाशबद्धाः सन्ति, ते (भुजो) भूयो भूयः (विष्पगब्भिया) विप्रगल्भिताः धाष्टर्यमासादिताः धृष्टाः सन्ति नियतिवादमाश्रित्यापि दानपुण्यादि क्रियायां प्रवर्तनात् (एवं) एवम् अनेन रूपेण (उवट्ठिया संतो) उपस्थिताः सन्तः नियतिवादे तिष्ठन्तः सन्तः (ते) ते नियतिवादिनः (न दुक्खविमोक्खया) न दुःखविमोक्ष काः जन्ममरणादि दुःखाद् न विमुक्ता भवन्ति सम्यग् ज्ञानविकलत्वात्तेषाम् ॥५॥ शब्दार्थ-एवं-एवम्' इसप्रकार 'एगे एके' कोई नियतिवादी 'पासत्था पावस्थाः' पाश्वस्थ कहते है 'ते--ते' वे 'भुज्जो--भूयः' वार-बार 'विप्पगम्भिया --विप्रगल्भिताः' नियति को कर्ता कहने की धृष्टता करते हैं एवं-एवम्' इसप्रकार 'उवट्ठियासंतो-उपस्थिताः सन्तः' उपस्थित होकर भी 'ते--तें' वे 'न दुक्खविमोक्खिया-न दुःखविमोक्षकाः' जन्ममरणादि दुःख छुडाने में समर्थ नहीं है ॥५॥ _ -अन्वयार्थ--- इस प्रकार कोई कोई नियतिवादी 'पासत्थ, है। पासत्थ, शब्द के दो संस्कृतरूप होते हैं--पार्श्वस्थ और पाशस्थ । पार्श्वस्थ का अर्थ है-मोक्षमार्ग से बाहर स्थित और पाशस्थ का तात्पर्य है कर्म बन्धनों से बँधे हुए। वे वार वार धृष्टता करते हैं । उनकी धृष्टता यह है कि वे नियतिवाद को स्वीकार करके भी दानपुण्यादि क्रिया में प्रवृत्ति करते हैं । इस प्रकार नियतिवाद में स्थित वे नियतिवादी दुःखों से मुक्ति नहीं पा सकते, क्योंकि वे अज्ञानी हैं ॥५॥ शहाथ-एवं-एवम्' या प्रमाणे 'एगे-एके' नियती पाही पासत्था-पार्श्वस्था' पाथ वाय छे. 'ते ते तेसो 'भुजो-भूयः' वारंवार 'विप्पगमिया-विप्रगल्भिता' नियतिने ता वानी घृष्टता ४२ छे. 'एवं-एवम्' २ रीते 'उचट्ठिया संतो-उपस्थिताः सन्तः' नियतिस्वाहमा उपस्थित थने ५५ 'ते-ते तसा 'न दुक्खविमोक्खिया-न दुःखविमोक्षकाः' म भरण ३पी हुथी छूटवाने शत भान यता नथी ॥५॥ अन्वयार्थ આ પ્રકારે કઈ કઈ નિયતિવાદી પાસસ્થ” છે. પાસન્થ” શબ્દના બે સંસ્કૃત રૂપ થાય છે. (૧) પાર્થસ્થ અને (૨) પાશસ્થ. પાર્થસ્થ મોક્ષમાર્ગની બહાર રહેલાને પાર્શ્વસ્થ કહે છે અને પાર્થ” એટલે કર્મબન્ધનો વડે બંધાયેલા. તેઓ વારંવાર ધૃષ્ટતા કરે છે. તેમની ધૃષ્ટતા એ છે કે તેઓ નિયતિવાદમાં માનતા હોવા છતાં પણ દાન, પુણ્ય આદિ ક્રિયાઓમાં પ્રવૃત્ત રહે છે. આ પ્રકારના તે નિયતિવાદીઓ દુઃખમાંથી મુક્ત થઈ શક્તા નથી, કારણ કે તેઓ અજ્ઞાની છે. શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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