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________________ १२ सूत्रकृताङ्गसूत्रे प्रत्याख्यानपरिज्ञया परित्यजेदित्यर्थः अथ जम्बूस्वामी सुधर्मस्वामिनं पृच्छति-हे भदन्त ! (वीरो) वीर भगवान् श्री महावीरः (बंधणं) बन्धन (किं) किम् किस्वरूपम् (आह) आह=ोक्तवान् (वा) वा अथवा (किं) किं प्रकारकं वस्तु स्वरूपं (जाणं) जानन् अवबुध्यमानः जीवः (तिउट्टई) त्रोटयति कर्मबन्ध विनाशयतीति ॥१॥ सुधर्मास्वामी प्राह-यःकोऽपि (चित्तमंतं) चित्तवन्त सचित्तं द्विपदचतु शब्दार्थ-(चित्तमंतं) सचित्त द्विपद, चतुष्पद आदि प्राणी (वा) अथवा (अचित्त) चैतन्य रहित सोना चांदि आदि (किसामवि) तथा तुच्छवस्तु-भूसाआदि अथवा स्वल्पभी (परिगिज्झ) परिग्रह ररवकर (वा) अथवा 'अन्न' दूसरेको परिग्रह रखनेको 'अणुजाणाइ' आज्ञा देकर (एवं) इसप्रकार (दुक्खा) दुःखसे 'णमुच्चई' जीव मुक्त नहीं होता है ॥२॥ ___अन्वयार्थ—पट्जीवनिकाय का वध करने से बन्ध होता है ऐसे आचारांग में कहे हुए बन्धन के स्वरूप को ज्ञपरिज्ञा से जानना चाहिये और जानकर आठ प्रकार के कर्मबन्धन को नष्ट करना चाहिये अर्थात प्रत्याख्यान परिज्ञा से उसका त्याग करना चाहिये जम्बूस्वामी सुधर्मास्वामी से पूछते हैं-भगवान् ! महावीर भगवान् ने बन्धन का क्या स्वरूप कहा है ? अथवा किस प्रकार के वस्तु स्वरूप को जानता हुआ जीव कर्मबन्धन का विनाश करता है ? ॥१॥ शहाथ-(चित्तमंतं) सथित्त ६५६ यतु५४ विगेरे प्राणिय। (वा) अथवा 'अचित्तं तन्यविनानी सानु याही विगेरे 'किसामवि' तथा तु२७ १२तु-मुसु विगैरे अथवा 231५Y 'परिगिज्झ' परियड मीन (वा) Aथा 'अन्नं' मीने पश्यि २५पानी 'अणुजाणाइ' माज्ञा आधीन ‘एवं' 240 शते 'दुक्खा' मथी 'ण मुच्चइ' ०१ भुत था नथी ॥२॥ અન્વયાર્થ-છકાયના જીવોની હિંસા કરવાથી કમને બન્ધ થાય છે. આ પ્રકારનું બનું સ્વરૂપ આચારાંગ સૂત્રમાં પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે તેને જ્ઞપરિણા વડે જાણવું જોઈએ. તે રીતે તેને જાણી લઈને આઠ પ્રકારના કર્મબંધનનો નાશ કરવો જોઈએ, એટલે કે પ્રત્યાખ્યાન પરિજ્ઞાથી તેને ત્યાગ કરે જોઈએ. જંબુ સ્વામી સુધર્મા સ્વામીને એવો પ્રશ્ન પૂછે છે? કે “હે ભગવન્! મહાવીર ભગવાને બન્ધનનું કેવું સ્વરૂપ કહ્યું છે ? અથવા ક્યા પ્રકારના વસ્તુ સ્વરૂપને જાણ થકે જીવ કર્મ બન્ધનને વિનાશ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧
SR No.006305
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size37 MB
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