________________
सूत्रकृताङ्गसूत्रे वेदान्तीकात्मवादःएकात्मवादीयपूर्वपक्षं दर्शयति सूत्रकारः---'जहाय' इत्यदि ।
मूलम्
जहा य पुढवी थूभे एगे नानाहि दीसइ । एवं भी कासिणे लोए विन्नू नाणाहि दीसह ॥९॥
११
१२
छाया--- यथा च पृथिवी स्तूप एको नानाहि दृश्यते । एवं भोः कृत्स्नो लोकः विज्ञः ( विद्वान् ) नानाहि दृश्यते ।।९।।
अन्वयार्थः--- ( जहा-यथा ) येन प्रकारेण (पुढवीथूभे-पृथिवीस्तूपः) पृथिवी समुदाय रूपोऽवयवी (एगेय-एकोऽपि ) एकरूपेण स्थितोऽपि ( नानाहिदीसइ-नाना
वेदान्तियों का एकात्मवाद एक ही आत्मा मानने वालों का पूर्वपक्ष सूत्रकार दिखलाते हैं। 'जहा' इत्यादि ॥
शब्दार्थ-'जहा-यथा' जिस प्रकार पुढवीथुमे 'पुढवीस्तूपः' पृथ्वोसमूह 'एगेय-एकोऽपि' एक ही “नानाहि दीसइ-नाना दृश्यते" नानारूगों में देखा जाता है। एवं-एवम्' इसी प्रकार 'यो-हे' हे जीवों 'किसणेलोएकृत्स्नो लोकः समस्तलोक 'विन्नू-विज्ञः आत्मस्वरुप 'नाणाहि-नाना' अनेकरूपों में 'दीसइ-दृश्यते' देखा जाता है।
अन्वयार्थ जैसे पृथ्वी रूप स्तूप एक होने पर भी सरिता सागर, पर्वत, नगर, ग्राम, घट, पट, आदि के भेद से अनेक रूपों वाला दिखाई देता है, एवं इसी प्रकार यह जड़ चेतन रूप सम्पूर्ण लोक ज्ञान स्वरूप आत्मा
___वहन्तियोना सात्मवाह એક જ આત્માને માનનારા લેકની માન્યતા સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા પ્રકટ ४श छे. "जहा य"
शहाथ-'जहा यथा' वाशते पुढवीमे-पृथ्वोस्तूपः' पृथ्वीसभूपगेय-एकोऽपि' मे 'नानाहि दीसइ-नाना दृश्यते' मने ३पामा पाय छे. 'एवं-एवम्' मे प्रमाणे 'भो-हे वो ‘कसिणे लोए-कृत्स्नो लोकः' समस्त दो 'विन्नू-विक्षः' मात्म२१३५ 'नाणाहि-नाना' भने ३पोमा 'दीसइ-दृश्यते' हेवामां आवे छ. ॥६॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર: ૧