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________________ मम प्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० १ अ. १३ परक्रियानिषेधः ९८१ चेष्टाव्यापारादिना तदनुमोदनं न कुर्यादित्यर्थः, ‘से सिया परो आरामंसि वा उज्जाणंसि वा' तम्-साधुम् , स्यात्-कदाचित् यदि परः कश्चिद् गृहस्थः आर।मे वा, उद्याने वा-बृहति लघुरूपे वा उद्याने इत्यर्थः 'नीहरित्ता वा पविसित्ता वा' निर्हाय वा-नीत्वा, प्रवेश्य वाप्रवेशं कारयित्वा 'पायाई आमजिज वा पमजिज था' पादौ-चरणौ आज्याद् वा प्रमृज्याद् वा-किश्चिद अधिकं वा पादप्रोग्छनरूपं मार्जनं कुर्यात्तहिं 'नो तं सायए नो तं नियमे नो र्थन नहीं करें क्योंकि इस प्रकार के गृहस्थ श्रावक द्वारा गला वगैरह में हार आदि का पहनाया जाना भी परक्रिया विशेष होने से कर्मबन्धों का कारण माना जाता है इसलिये कर्मबन्धों से छुटकारा पाने के लिये दीक्षा या प्रव्रज्या ग्रहण करनेवाले जैन साधु इस प्रकार के गृहस्थ द्वारा अपने गला वगैरह में हारादि का बन्धन को मनधचन कर्म से अभिलाषा या अनुमोदन या समर्थन नहीं करें अन्यथा मना नहीं करने पर कर्मबन्धद्वारा संयम की विराधना भी होगी इसलिये संयम पालनार्थ जैन साधु को गृहस्थ श्रावक के द्वाराकिये जानेवाले हारादिबन्धन को तन मनवचन से पूर्ण मना कर दे। अब दूसरे ढङ्ग से भी जैन साधु को परक्रियाविशेष का निषेध करते हैं-'से सिया परो आरामंसि वा' उस पूर्वोक्त जैन साधु को यदि कदाचित् पर अर्थात् कोई गृहस्थ श्रावक आराम में अर्थात अत्यन्त रमणीय बगीचा में या 'उज्जागंसि वा' उद्यानमे 'नीहरित्ता वा पविसित्ता वा' ले जाकर पा प्रवेश कराकर उस साधु के पादाई आमजिज्ज वा पमजिज वा' पादों का आनाजेन करें या प्रमाजेन करे अर्थात् एक वार या अनेकवार साधुके चरणों को पोंछे तो उसको अर्थात् इस प्रकार के गृहस्थ श्रावक द्वारा किये जानेवाले पाद पोंछनादि को जैन साधु 'नो तं सायए' मन અને શરીરથી તેનું અનુમાન કે સમર્થન કરવું નહીં. કેમકે આ રીતે ગૃહસ્થ શ્રાવકે ગળા વિગેરેમાં હાર વિગેરે પહેરાવવું તે પણ પરક્રિયા વિશેષ હોવાથી કમબંધનું કારણ માનવામાં આવે છે. તેથી કર્મબંધથી છૂટવા માટે દીક્ષા ધારણ કરવાવાળા સાધુએ આ રીતે ગૃહસ્થ આપેલ કે ગળા વિગેરેમાં પહેરાવેલ હારાદિ બંધનની મન વચન અને કાયાથી અભિલાષા કે અનુમોદન અથવા સમર્થન કરવું નહીં. કારણ કે તે હારાદિ સર્વીકારવાથી કર્મબંધ દ્વારા સંયમની વિરાધના પણ થાય છે તેથી સંયમનું પાલન કરવાના હેતુથી સાધુએ ગૃહસ્થ શ્રાવકના હારાદિ બંધનનો તન મન અને કાયાથી અસ્વીકાર કરી દેવો. वे प्ररा-त२थी साधुने ५२ठिया विशेषन निषेध ४२ छ. 'परो आरामंसिवा ऊजागंसि वा' ५ त मासाधुने बाय ५२ अर्थात् २५ श्रा१४ २मणीय ll यामा , धानमा 'नीहरित्ता वा पविसित्ता ।' नय मगर प्रवेश ४२॥वान ते साधुना 'पायाई' ५ोनु 'आमज्जिज्ज था, पमज्जिज्ज वा' मामान प्रभारी न ४२ मर्यात मेवार में मने वा२ साधुन। ५गने हुंछ तो 'नो तं सायए' तनु मेटले , मा शते श्री. ॥॥२॥ सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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