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मर्ममकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ स. १ अ. ११ शब्दाशक्तिनिषेधः मनसि न विचारयेदित्यर्थः, अथ शुषिरशब्दान् श्रोतुं निषेधति-‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'अहावेगइयाई सदाई सुणेई' यथा वा-एककान् शब्दान् शणोति'तं जहा-संखसदाणि वा' तद्यथा-शङ्खशब्दान् वा 'वेणुसहाणि वा' वेणुशब्दान् वा 'वंससदाणि वा' वंशीशब्दान् वा 'खरमुहसदाणि वा' खरमुखीशब्दान् वा-तोहाडिकाशब्दान् 'पिरिपिरिया सदाणि वा' पिरिपिरियाशब्दान् वा-कोलियापुटावनद्धवंशादिनलिकाशब्दान् 'अन्नयराई वा तहप्पगाराइं अन्यतरान् वा-तदन्यान् वा तथाप्रकारान्-शङ्खप्रभृतिशब्दान् विरूवरूवाई विरूपरूपान्-नानाविधान् 'सद्दाई' शब्दान् ‘झुसिराई' शुषिरान्-छिद्रोत्पन्नान् शब्दान् को इस तरह के अनेक प्रकार के हस्तताल वगैरह के घन शब्दों को भी नही सुनना चाहिये। ____ अब जैन मुनि महात्माओं को शुषिर वाद्यविशेष के शब्दों को सुनने का निषेध करते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, अहावेगयाइं सहाई सुणेई'वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि वक्ष्यमाणरूप के एक एक शब्दों को सुने 'तं जहा-संखसहाणि वा' जैसे कि-शंख के शब्दों को अर्थात शंखध्वनि को 'वेणुसद्दाणि वा' वेणु के शब्दों को या 'वंससद्दाणि वा' वंशी-मुरली के शब्दों को या 'खरमुहसद्दाणि वा' खरमुखी के शब्दों को अर्थात् धूं धूं बाजा के शब्दों को जिस को तोहादिका बाजा भी कहते हैं उस के शब्दों को या 'पिरिपिरियासद्दाणि वा' पिरिपिरिया के शब्दों को अर्थात् कोलियक पुटों से बजते हुए बांस वगैरह की नलिका के शब्दों को या 'अन्नयराई वा तहप्पगा. राइं विरूवरूवाई सद्दाणि झुसिराइं' इसी प्रकार के दूसरे भी नानाप्रकार के शुषिर शब्दों को याने विरूपरूपवाले नानाप्रकार के शब्दों को जो कि छिद्रों से उत्पन्न होने से शुषिर शब्द से व्यवहृत होते हैं इस तरह के नाना प्रकार के शुषिर अर्थात् छिद्रवाले शंख वेणु वंशी मुरली वगैरह के शब्दों को 'कण्णमोय. णपडियाए' कान से सुनने की इच्छा से बाहर कहीं भी जाने का विचार या
હવે સંયમી મુનિને સુષિરવાઘ વિશેષના શબ્દોને સાંભળવાના નિષેધનું કથન કરે છે 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते सयभशास साधु भने साथी 'अहावेगयाइं सहाई सुणेई' ने १क्ष्यमा शतथी मे २४ शहने सामने 'तं जहा' रेभ संखसदाणि वा' मना Awa ने मेटले पनीने मथवा 'वेणुसहाणि वा' वोगुना शहाने मथवा 'वंससदणि वा' पासणीना शहाने अथवा 'खरमुहसदाणि वा' ५२भुभाना शहाने अर्थात् धू धू सवारी पास होने 24। 'पिरिपिरिया सद्दाणि वा' ५२ पिरिया शा २५२१। 'अन्नयराइं वा तहप्पगाराई विरूवरूवाई सद्दाणि झुसिराई' 14। प्र४२ना भी मने प्रा२न। सुषिर શબ્દને એટલેકે અનેક પ્રકારના શબ્દોને કે જે છિદ્રોથી ઉત્પન્ન થવાવાળા શુષિર શબ્દથી ઓળખાય છે. આ પ્રકારના શુષિર છિદ્રવાળા શંખ વેણુ વાંસળી મુરલી વિગેરેના શબ્દોને
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श्री माया
सूत्र : ४