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________________ आचारांग सूत्रे एककान्-वक्ष्यमाणस्वरूपान शब्दान् गृणोति 'तं जहा - तालसद्दाणि वा तद्यथा - तालशब्दान या हस्ततालशब्दान् वा 'कंसतालसदाणि वा' कंसतालशब्दान् वा 'लत्तियसदाणि वा' लतिकाशब्दान् वा कंशिकाशब्दान् वा 'गोधियसदाणि वा' गोधिकाशब्दान् वा भाण्डक क्षिका हस्ततातो विशेषशब्दान् 'किरिकिरियासदाणि वा' किरिकिरियाशब्दान् वा भाण्डानां वंशादिकम्बिकाशब्दान् 'अम्नयराणि वा तहपगाराणि' अन्यतरान् वा तदन्यान् वा तथाप्रकारानहस्ततालप्रभृतिशब्दान् 'विरूवरूवाई सदाणि घणाई' विरूपरूपान् - अनेकविधान् शब्दान् घनन - घनशब्देन प्रसिद्धान् 'कण्णसोयणपडियाए' कर्णश्रवणप्रतिज्ञया - कर्णश्रवणेच्छया 'नो अभिसंधारिज्जा गमणार' नो अभिसन्धारयेद् - मनसि संकल्पं कुर्याद् गमनाय - गन्तुं सुणेइ' - वह पूर्वोक्त भिक्षु संयनशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि वक्ष्यमाण रूप के एक एक शब्दों को सुने 'तं जहा तालसद्दाणि वा' जैसे कि तालशब्दों को अर्थात् हस्ततालशब्दों को या, 'कंसतालसद्दाणि वा' कंसताल शब्दों के या 'लत्तिय सद्दाणि वा' लतिका - कंशिकाताल शब्दों को या 'गोधियसद्दाणि वा ' गोधिका शब्दों को याने भाण्डकक्षिका नाम के हस्तगत आतोद्यविशेष के शब्दों को या 'किरिकिरियासदाणि वा किरिकिरिया शब्दो को अर्थात् भाण्डों के वंश (dia) के कम्बिका वत्ती से बनाये हुए वाद्यविशेष के शब्दों को 'अन्नयराणि तपगाराणि विरूत्ररूबाई सहाणि वा' इस तरह के दूसरे भी बहुत से हस्ततालप्रभृति के शब्दों को अर्थात् विरूपरूप - नानाप्रकार के शब्दों को याने 'घणाई कण्णसोयणपडियाएं' घनशब्दों से प्रसिद्ध शब्दों को कान से सुनने की प्रतिज्ञा से 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' बाहर कहीं भी जाने के लिये मन में संकल्प या विचार भी नहीं करे क्यों कि इस प्रकार के शब्दों को सुनने की आसक्ति होने से संयम को विराधना होगी इसलिये संयम पालनार्थ साधु नही नामना वाद्यविशेष (ढोल) ना मनोहरशन्होने 'तालसद्दाणि वा' तास शब्होने अर्थात् હસ્તતાનૢ શબ્દને अथवा 'कंसतालसद्दाणि वा ४सतात शब्दाने 'लत्तियसद्दाणि वा ' ક્ષતિક કાંશિધ્રા તાલુ होते अथवा 'गोधियसदाणि वा' गोषि शब्होने भेटले કે ભાંડ કક્ષિકા નામના हस्तगत खातोद्य विशेषना शब्होने अथवा 'किरिकिरिया साणि वा' [रिया होने अथवा वांसथी मनावेसा याद्य विशेषना शण्होने अथवा 'अन्नयराणि तह पगाराणि विरूवरूवाई सदाणि' मा प्रहारना धणा मेवा इस्तताल विगेरेना શબ્દને અર્થાત્ અનેક પ્રકારના શબ્દને એટલે કે ઘન શબ્દથી એળખાતા શબ્દેને 'कण्णसोयणपडियाए' अनथी सांगजवानी छाथी 'नो अभिसंधारिज्जा गमणाएं' महार ज्यांच પણ જવા મનમાં સંકલ્પ કે વિચાર પણ કરવા નહીં, કેમકે આવા પ્રકારના શબ્દને સાંભળાવાની આસક્તિ થવાથી સયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સ`યમનુ` પાલન કરવા માટે સાધુએ આવા અનેક પ્રકારના હસ્તતાલ વિગેરેના ઘન શબ્દને કયારેય સાંભળવા નહીં. ८९६ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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