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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ.१सू. २ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपणम् ८८५ अन्यतरस्मिन तदन्यस्मिन् वा तथाप्रकारे- अङ्गारदाहादि स्थानयुक्तस्थण्डिलभूमौ 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा' नो उच्चारप्रस्रवणम्-मलमूत्रपरित्यागं व्युत्सृजेत्-कुर्यात् ‘से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' स-संयमवान् साधुः यत् पुनः स्थण्डिलं जानीयात्-'नइयायतणेसु वा' नद्यायतनेषु वा-तीर्थस्थाननदीतटेषु 'पंकाययणेसु वा' पङ्कायत ने षु वा-पङ्कमय नदीतीर्थस्थानेषु 'ओघाययणेसु वा' ओघायतनेषु वा-नदीप्रवाहरूपतीर्थस्थानेषु तडागजलप्रवेशौघमागषु वा 'सेयणबहंसि वा' सेचनपथे वा 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा' मृतकों का चैत्य गृह है अर्थात् मुद्दे को मिट्टी वगैरह में स्थापित कर रखने का चैत्य का घर है ऐसा जानले या देख ले तो 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडि. लंसि' इस प्रकार के अङ्गार वगैरह के दाहों के स्थानों से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में संयमशील साधु और साध्वी को 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा' मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये क्यों कि इस तरह के अङ्गारदाहादि स्थानो से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग करने से संयम की विराधना होगी क्योंकि इस तरह के अङ्गार दाह श्मशान भूमि वगैरह से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग करने से जीवों की हिंसाकी संभावना होने से संयम की विराधना होगी इसलिये संयम पालन करनेवाले साधु और साध्वी को इस तरह के श्मशान भूमि वगैरह से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि संयम पालन करना ही संयमशील साधु और साध्वी का परम कर्तव्य माना गया है वह संयमशील साधु या साध्वी ‘से जं पुण एवं जाणिज्जा' स्थंडिलभूमी को वक्ष्यमाण प्रकार से जान ले को यह स्थण्डिलभूमी 'नइयायतणेसु वा' नद्यादि. तीर्थ स्थान के समीपस्थ है अथवा 'पंकाययणेसु' कर्दममय नदी तीर्थस्थान के रामानु 4 ) छे. मारीत oneyla हेभीवे तो 'अन्नयर सि या तहप्पगार सि थंडि. સિ’ આવા પ્રકારના અંગાર દાહ વિગેરે સ્થાનના સંબંધવાળી થંડિલભૂમીમાં જૈન સાધુ અને सपी 'नो उच्चारपासवणं बोसिरिज्जा' मतभूना त्या ४२३नही. म. मा ४ारना અંગારદાતાદિ સ્થાનેના સંબંધ વાળી સ્થડિલભૂમીમાં મલમૂત્રને ત્યાગ કરવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. કેમકે આવા સ્થાનના સંબંધવાળા ચંડિલમાં મલમૂત્રોત્સર્ગ કરવાથી જીવહિંસા થવાની સંભાવના હોવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા સાધુ અને સાક્ષીએ આવા પ્રકારના સ્થડિલમાં મલમૂવને ત્યાગ કરે નહીં. કેમકે સંયમનું પાલન કરવું એજ સાધુ અને સાવનું પરમ કર્તવ્ય માનેલ છે. सयमा साधु अने सात से जे पुण एवं जाणिज्जा' स्थसियूभी न वक्ष्यमा अरे ( मा स्थाविभूभी 'नइयायतणेसु वा' नही (वगेरे ती स्थाननी समीपमा छ मय! 'पंकाययणेसु' ।।११जीनही ती स्थाननी न . 440 'ओघाययणेसु वा' श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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