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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कवर उ. १ सू. २ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपगम् ८७७ प्राकारादीन् 'समाणि वा विसमाणि वा' एतानि कचवरपुञ्जप्रभृतीनि समानि वा-समतलानि, विषमाणि वा-विषमतलानि वा यदि जानीयातहि 'अन्नयरंसि तहप्पगारंसि यंडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा-अन्यस्मिन् वा तथाप्रकारे आमोकादिसहिते स्थण्डिले 'नो उच्चारपासवणं वोसि. रिजा' नो उच्चारप्रस्रवणम्-मलमूत्रपरित्यागं व्युत्सृजेत-कुर्यात् एतेषु आत्मसंयमविराधना स्यात् 'से भिक्खू वा भिक्खुगी वा' स भिक्षु भिक्षुकी वा 'से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' स संयमवान् भिक्षुः यत् पुन: स्थण्डिलं बक्ष्यमाणरीत्या जानीयात्-'माणुसरंधणाणि वा महिसकरणाणि वा' मानुपरन्धनानि वा-मनुष्यचुलिहका पाकस्थानानि, महिपकरणानि वा महिषसभी कचरा पुञ्ज वगैरह को 'समाणि ग विसमाणि वा' समतल रूप से या विषम रूप से स्थापित किये हुए जान कर या देखकर 'अन्नयरंसि तहप्पगारंसि स्थंडिलंसि' इस प्रकार के कचघर वगैरह के पुञ्जों से भरे हुए स्थण्डिल में साधु और साध्वी को 'नो उच्चारपासवणं योसिरिज्जा' मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि इस तरह के कचवर अर्थात् कूडे कचडे तृण घास वगैरह के ढेरों से भरे हुए स्थण्डिल में गिरने की संभावना होने से संयम की और
आत्मा की विराधना होगी, इसलिये संयम पालन करने वाले साधु और साध्वी को इस प्रकार के कूडे कचडे खड्डे वगैरह से युक्त स्थण्डिल में मल. मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये।।
अब दूसरे प्रकार से भी पाकशाला वगैरह से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमि में मलमूत्र त्याग का निषेध करते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' वह पूर्वोक्त भिक्षुक संयमशील मुनि महात्मा और भिक्षुकी साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से स्थण्डिलभूमि को जान ले कि 'माणुसरंधणाणि वा मनुहैं मापाजी । भूमि छ अथवा 'पदुग्गाणि वा' भोट (४६ ७५२ प्रा१२ विगैरे छे. 'समाणि बा' २॥ मया यराना ढसा विगेरे समतल ३५थी अथवा 'विसमाणि वा' विषम पाधी स्थापित ४२ गान 'अन्नयर सि वा तहप्पगार सि थंडिलंसि' या शतना ध्यराना साथी म२॥ २५उसमा साधु भने सायास 'नो उच्चारपासवणं वोसिरिजा' भराभूवना त्या ४२३॥ नही 3 ॥ शते । ७२२॥ मने ४५ पास વિગેરેના ઢગલાથી ભરેલા સ્થડિલમાં પડવાની સંભાવના હોવાથી સંયમની અને આત્માની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવા વાળા સાધુ અને સાધ્વીએ આ રીતના ફૂડા ડચરા ખાડા ટેકરા વિગેરે વાળા સ્પંડિલમાં મલમૂત્રને ત્યાગ કરે નહીં
હવે પાકશાળા વિગેરેના સંબંધ વાળા સ્પંડિલમાં મલમૂત્રના ત્યાગ કરવાને નિષેધ १३२ मतावे छे.-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित संयमशीस साधु भने सावी ‘से जे पुण थंडिलं जाणिज्जा' २५ सिमित सेवामाथी ये हैं 'मानुसरधणानि वा ॥ २५ मिनी भूमि न भायुसे। माटेनु साईट
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श्री सागसूत्र :४