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________________ क आचारांगसूत्रे मठेषु 'अणुवीइ उग्गहं जाइज्जा' अनुविचिन्त्य-विचार्य अवग्रहं याचेत 'जे तत्थ ईसरे वा' यस्तत्र ईश्वरो वा-गृहस्वामी स्यात्, 'जे तत्थ समहिए वा' यस्ता समधिष्ठाता वा-गृहादिकार्यसंचालको वा स्यात् 'ते उग्गहं अणुनविजा' तम्-गृहस्वामिनम् सम धिष्ठातारम् वा अवग्रहम्-वसत्यादिविषयकम् अवग्रहम् अनुज्ञापयेत् तथाहि 'काम खलु आउसो ! हे आयुष्मन् ! कामं खलु तव इच्छानुसारम् 'महालंदं अहापरिनायं' यथालन्दम्यथाकालम् यावत्कालपर्यन्तम्, यथापरिज्ञातम्-गवन्मात्रक्षेत्रम् त्वया अनुमतं तावत्कालमेव तावत्क्षेत्रमात्रम् 'वसामो' वसामः 'जाव आउसो' यावत्-आयुष्मन ! आज्ञापयति 'जाव आउसंतस्स उग्गहे' यावत् कालम् आयुष्मतः-तव अवग्रहः-कालक्षेत्रविषयक आदेशः 'जाव साहम्मिाए एंति' यावत् कालम् सार्मिकाः साधवः आयान्ति 'ताव' तापमात्रकाल. या ग्रहपति के उपाश्रयों में या 'परियावसहेसु वा' अन्यतोर्थिक दण्डी वगैरह के मठों में 'अणुवीई' रहने के लिये हृदय में विचार कर 'उग्गहं जाइजा' क्षेत्राव. ग्रहरूप द्रव्यावग्रह (जगह स्थान) की याचना करे और जो 'जे तत्थ ईसरे वा' उन अतिथिशाला रूप धर्मशाला या उद्यानशाला या उपाश्रय का ईश्वर-मालिक स्वामी अधिकारी हों या 'जे तत्थ समहिए वा' जो उन अतिथिशाला वगैरह के कार्य संचालक अधिष्ठाता हों 'ते उग्गहं अगुन्नविजा' उससे क्षेत्रावग्रह रूप व्यावग्रह-अर्थात् रहने के लिये स्थान की अनुज्ञा करने को विनती करें की 'कामं. खल्लु आउसो' हे आयुष्मन् ! ग्रहस्थ! आप के 'अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो' इच्छानुसार ही जितने काल के लिये और जितने ही ठहरने के स्थान के लिये आपकी अनुमति होगी उतने ही काल तक और उतने ही स्थान में हम निवास करेंगे और 'जाव आउसो' यावत् जितने ही काल तक ठहरने के लिये आपका आदेश होगा 'जाव आउसंतस्स उग्गहे जाव' तथा जबतक ही 'साहम्मियाए एंति ताव उग्गहं उग्गिणिस्तामो' साधर्मिक साधु मुनि महात्मा नही आते हैं मायामा धान सभा 'गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा' २५२१। पति શ્રાવકના ઉપાશ્રયમાં અથવા અન્યતીર્થિક દંડી વિગેરેના મઠમાં રહેવા માટે ભાવીક उगह जाइज्जा'यमा विया उरीन क्षेत्रावय ३५ द्रव्यावह (या स्थान) नी यायना કરવી. અને જે એ અતિથિશાળા કે ઉદ્યાનશાળા કે ઉપાશ્રયના માલીક હોય અથવા વહીવટ કરનાર અધિકારી હોય તેની પાસે ક્ષેત્રાવ પ્રહ રૂપ દ્રવ્યાવગ્રહ એટલે કે રહેવા भाटना स्थाननी माज्ञा भेगा ४२वी , 'कामं खलु आउसो' 3 सायुकभन् ४! 'अहालंदं अहापरिन्नायं वसामो' मानी छानुसार २८मा समय माट અને જેટલા સ્થાન માટે આપની સંમતિ હશે એટલા જ કાળ સુધી અને એટલા જ स्थानमा समे पास इशशुमने 'जाव आउसो !' २८। समय भाट 'जाव आउसंतस्स उगगहे' २२। तभारी मनुभात शे तथा 'जाव साहम्मिआए' या सुधा साधभिः साधु श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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