________________
मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० ७ पञ्चमं वस्त्रैषणाध्ययननिरूपणम् ७०९ विशेषेण वस्त्रग्रहणनिषेधमाह-'से भिक्खू वा भिवखुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण एवं जाणिज्जा' स यत् पुनरेवं-वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात्-'अप्पंडं जाव अप्पसंताणगं' अल्पाण्डम्-पिपीलिकादीनाम् अण्डरहितं यावत्-प्राणम् अबीजम् अहरितम् अनोषम् अनुदकम् उत्तिङ्गपनकदकमिश्रितमृतिकालूतातन्तुजालरहितम् यद्यपि वस्त्रम् वर्तते तथापि 'अनलं अस्थिरं अधुवं' न अलम् न समर्थम् परिधानाच्छादनादिकार्यायोग्यम् तथा अस्थिरम् जीर्णशीर्णत, अध्रुवम्-न चिरकाल स्थायि तद् वस्त्रमस्ति, एवम् 'अधारणिज्जं रोइज्जतं न रुच्चइ' अधारणीयम्-धारणायोग्यः रोच्यमानमपि-गृहस्थेन श्रद्धया दीयमानपि न रोचतेनाभिकाङ्क्षति साधुः तद् वस्त्रम् तर्हि 'तहप्पगारं वत्थं अफामुयं' तथाप्रकारम्-तथाविधम् जीर्णशीर्णादिरूपं वस्त्रम् अप्रासुकम् सचित्तम् यावद् अनेषणीयं मन्यमानो 'नो पडिगाहिज्जा' साधु और साध्वी को इस तरह के वस्त्र को नहीं लेना चाहिये इसी तरह से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' वह भिक्षु और भिक्षुकी 'से जं पुण एवं जाणिज्जा' यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से वस्त्र को जान लेकि यह वस्त्र 'अप्पंडं जाव अप्पसंताणगं' अल्पाण्ड-थोडे ही अण्डों से युक्त है एवं थोडे ही अंकुर उत्पादक बीजों से युक्त है एवं थोडे ही हरित घास वगैरह वनस्पति विशेष से युक्त है एवं उदक से भी रहित है तथा उतिङ्ग पनक छोटे छोटे जीव जन्तु से भी रहित है और उदक मिश्रित मिट्टी भी नहीं है और मकरे के जाल परम्परा से भी रहित यह वस्त्र है किन्तु यह वस्त्र 'अनलं अथिरं अधुवं' पहनने ओढने के लायक नहीं हैं एवं जीर्णशीर्ण है अत्यन्त फटा पुराना है और चिरकाल तक स्थायी भी नहीं है तथा 'अधारणिज्ज' धारण करने योग्य भी नहीं है और 'रोइज्जंतं न रुच्चई' गृहस्थ के द्वारा श्रद्धा एवं आदर पूर्वक दिया जाता होने पर पा साधु सामीमे से ४२ना पने सेवा नही . १ प्रमाणे-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते पूरित संयमशीय साधु भने साथी से जं पुण एवं जाणिज्जा' ना Marwi की शेते वे अर्थात् १क्ष्यमा शत परत है 'अप्पंडं जाव अप्पसंताणगं' मा पत्र थोडामाथी युक्त छ तथा थोड1 म२ उत्पा બીવાળું છે તથા શેઠા જ લીલા તૃણ-ઘાસ વિગેરે વનસ્પતિ વિશેષથી યુક્ત છે. તથા પાણીથી રહિત છે. તથા નાના નાના જીવજંતુઓથી પણ રહિત છે. તથા પાણું વાળી માટિ પણ નથી. તથા મકડાની પરંપરાથી પણ રહિત છે. પરંતુ આ વસ્ત્ર 'अनलं अथिर अधुर्व अधारणिज्ज' ५९२ , मौदा तय नथी. तथा नुनु पुरा छ. या टेस छे. मने 'अधारणिज्ज' पाडेर साय नथी. तथा 'रोइज्जतं न रुच्चई' रथ द्वारा श्रद्धा ती मा४२ पूर्व हेवामां मातु हावा छतi पy (साधुने) ५स नथी. 'तहप्पगार वत्थं' मा ४२नु पख २ दुनु पुरा भने शटेस डाय ते १२त्र 'अफासु' मासु सथित 'अणेसणिज्ज जाव नो पडिगाहिज्जा'
श्री सागसूत्र :४