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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. १ सू० ६ पञ्चमं वस्त्रैषणाध्ययननिरूपणम् ७०५ यदि कदाचित् तस्मै साधवे परो नेता-गृहस्वामी गृहादेव वस्त्रमानीय निसृजेत्-दद्यात् तदा 'से पुवामेव आलोइज्जा' स-साधुः पूर्वमेव-वस्त्रग्रहणात् प्रागेव आलोचयेत् तद्वस्त्रं प्रतिलेखितुं प्रयतेत तथाहि 'आउसोत्ति वा भगिणित्ति वा' आयुष्मन ! इति वा भगिनि ! इति वा-इत्येवं रूपेण सम्बोध्य वदेत् 'तुमं चेव णं संतियं वत्थं अंतो अंतेण पडिलेहिनिस्सामि' तब चैवं खलु इदं वस्त्रम् अन्तप्रान्तेन चतुष्कोणपर्यन्तेन प्रतिलेखिष्यामि-अहं प्रतिलेखना करिष्यामि, अन्यथा प्रतिलेखनामकृत्वा तद्वस्त्रं न ग्रहीष्यामि, यतः 'केवलीबूया आयाणमेयं केवली- केवलज्ञानी भगवान् तीर्थकृद् बयात्-वदति-यद् आदानमेतत्-अप्रतिलेखितवस्त्रग्रहणम् कर्मबन्ध कारणं भवति तथाहि कर्मबन्धकारणमाह-वत्थं तेण बद्धे सिया कुंडले वा' वस्त्रान्तेन-वस्त्रप्रान्तेन कुण्डलं वा बद्धं स्यात् कदाचित् बद्धं भवेत् 'गुणे वा हिरण्णे वा सुवण्णे वा' गुणो वा सूत्रादिकम्, हिरण्यं वा रजतादिकं, सुवर्ण वा कनकं वा बद्धं भवेत् पुचामेव' वह साधु वस्त्र लेने से पहले ही 'आलोइज्जा' आलोचन करे अर्थात् उस वस्त्र को प्रतिलेखन करने के लिये यतना करे जैसे कि 'आउसोत्ति या भगिणित्ति वा--हे आयुष्मन् ! गृहस्थ श्रावक प्रमुख ! अथवा हे भगिनि ! बहन ! इस प्रकार सम्बोधन कर कहे कि 'तुमं चेव णं संतियं वत्थं' इस वस्त्र को 'अंतो अंतेण पडिलेहि जिस्मामि' अन्त प्रान्त चतुष्कोण पर्यन्त तक में प्रतिलेखना करूंगा, अन्यश तुम्हारे इस वस्त्र को प्रतिलेखन किये बिना में नहीं ग्रहण करूंगा क्योंकि 'केवली बूया' केवली केवल ज्ञानी भगवान् महावीर स्वामी ने उपदेश दिया है कि-'आयाणमेयं' यह अप्रतिलेखित वस्त्र का ग्रहण करना आदान कर्मबन्धका कारण माना जाता है, क्योंकि 'बत्थं तेण बद्धे सिया' उस वस्त्र के प्रान्त से छोड से 'कदाचित कोई 'कुंडले वा' कुण्डल बन्धा हुआ हो सकता है या 'गुणे वा' सूत्र-सूत धागा वगैरह भी उस वस्त्र के अन्तप्रान्त भाग में बन्धा हुआ हो सकता है एवं 'हिरणे वा हिरण्य-रजतादि भी बन्धा हुआ हो सकता है तथा 'सुवण्णे वा' सुवर्ण-सोना भी बन्धा हुआ हो सकता आलोइज्जा' ते साधु x aai पडसा मासायन ४२७ मत से पखन प्रति. मन ४२५। भाटे यतन। ४२वी भ3-'आउसोत्ति वा भगिणित्ति वा' हे मायुष्मन् ! गृहस्थ श्राप ! अथवा मन ! २॥ प्रमाणे समापन प्रशन उ 'तुमं चैव संतियं वत्थं' तमा२१ मा 'अंतो अंतेण पडिलेहिज्जिस्सामि' मन्त प्रान्त यार भूरा સુધી જ પ્રતિલેખન કરીશ કારણ કે તમારા આ વસ્ત્રની પ્રતિલેખના કર્યા વિના હું स्वीरीश नही. -'केवलीबया'वज्ञानी मावान् महावीर स्वामीना पहेश छ -'आयाणमेयं' 241 प्रतिवेमनी या विनाना वखने अडाए ५२७ २४ान मात्
धनु ४।२९ भानपामा पावले. 'वत्तेण बद्धेसिया कुडले वा' भ ये रखना छ ४४ाय ३६
मधेसहाय 'गुणे बा' अथवा २। विगेरे ५५ त पखने छेउ मायामा भाव डाय 'हिरणे वा सवण्णे वा' सोनु तथा यह विगैरे ५७५ मांधेत
आ०८९
श्री आया
सूत्र:४