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आचारांगसूत्रे प्रासादयोग्या इमे वृक्षाः इति वा 'तोरणजोग्गाइ वा गिहजोग्गाइ वा तोरणयोग्याः इमे वृक्षाः गृहयोग्याः इमे वृक्षाः इति 'फलिहजोग्गाति वा अग्गल जोग्गाइ वा' फलकयोग्याः काष्ठपट्टिकायोग्याः इमे वृक्षाः, अर्गलायोग्याः इमे वृक्षाः 'नावाजोग्गाति वा, उदगदोणजोग्गाति वा' नो योग्याः इमे वृक्षाः, उदकद्रोणीयोग्या:-लघुनौ योग्या इमे वृक्षाः 'पीढचंगवेरनंगलकुलियतलट्ठी नाभिगंडी आसणजोग्गाइ वा' पीठचंगवेर-लागल-कुलिकयंत्र लष्टिनाभि-गण्डी-आसन योग्याः इमे वृक्षाः इति वा, तत्र पीठं 'पीढी' इति भाषाप्रसिद्धम् चंगबेरम्-काष्ठपात्रविशेषः, लाङ्गलम्-हलरूपम्, कुलिकम्-कुठारान्तःपातिकाष्ठविशेषः यन्त्रम्-नानाप्रकारकं प्रसिद्धम्, लष्टः-लाठी इति भाषाप्रसिद्धः नामिः-शकटमध्यवर्तिकाष्ठविशेषः, गण्डी-सुवर्णकारकाष्ठपात्रविशेषः, आसनम्-पीठासनादिकं प्रसिद्धमेव एवं 'सयण 'रूक्खा महल्ले पेहाए नो एवं वइज्जा' बडे बडे वृक्षों को देखकर ऐसा वक्ष्यमाण रीति से नहीं बोले-'तं जहा' जैसेकि 'पासाय जोग्गात्ति वा' ये वृक्ष प्रासाद महल में लगानेके योग्य हैं ऐसा नहीं बोले एवं 'तोरण जोग्गाइ वा' ये वृक्ष तोरण द्वार भागमें मेहराव बनाने के योग्य हैं एवं 'गिहजोग्गाइ वा ये वृक्ष गृह में लगाने के योग्य हैं अर्थात् इन वृक्षों से घर बनाया जा सकता है तथा 'फलिहजोग्गाइवा ये वृक्ष फलक-पाट बनाने के योग्य हैं इसी प्रकार ये वृक्ष अग्गलजोग्गाइ वा' अर्गला कील वगरह बनाने के योग्य हैं एवं ये वृक्ष 'नावजोग्गाणि वा' नाव बनाने के योग्य हैं अथवा ये वृक्ष-'उदगदोणजोग्गात्ति वा' पानी में तेराने के लिये छोटी डेंगी बनाने के योग्य है 'पीढचंगबेरलांगल' पीठ-चौकी और चंगबैर काष्ठपात्र विशेष तथा लागल-हल एवं-'कुलिकर्जत' कुलिक-कुल्हाडी का बेंट और अनेक प्रकारका यंत्र चक्की केल्ह वगैरह यंत्र विशेष तथा-'लट्ठी नाभिगंडी' लष्ठि लाठी एवं नाभि-गाडो के मध्यवर्ती-धूरी तथा गण्डि सुर्वणकार का पात्र विशेष तथा-'आसणजोग्गाइ वा' आसन पीठासनादि बनाने के योग्य हैं एवं ये एवं वइज्जा' २॥ पक्ष्यमा शत मत नही 'तं जहा' म 'पासायजोग्गति वा' म! पृझे भडेस- सामi aqan साय छे. मा 'तोरणजोग्गाति वा' ४२५ भासण ! योग्य. तया 'गिहमोग्गाइ वा' मा बी १२ मामलेगा। योग्य छ. २मर्थात २॥ वृक्षाथी घर मनापी शय तवा छे. 'फलिहजोग्गाइ वा' या वृक्ष ३४ अर्थात् पाट मनाचा योग्य . शते या वृक्ष 'अगल जोगाइ वा' Aler अर्थात् लागण मनावा योय छे. 424। 'नावा जोग्गाइ वा' मा बाडीया मनाव। २१॥ छ. अथवा 'उदगदोणजोग्गाति वा' ॥ वृक्ष पालीमा तरामाटे नानो तरा मनापा २५॥ छ. मे प्रमाणे 'पीढचंगबेरलांगलकुलिकयंत' २॥ वृक्ष मा भने ચંગવેર એટલે કે લાકડાના પાત્ર વિશેષ તથા હળ અને કુહાડીનો હાથો તથા અનેક પ્રકારના यत्र घटी विशेष यत्र मनाया योग्य छ अथवा 'लट्ठीनाभिगंडी आसणजोगाइ
श्री मायारागसूत्र :४