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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू. २७ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम्
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वा' भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'गामाणुगामं दूइज्जमाणे ' ग्रामानुग्रामम् - ग्रामाद् ग्रामान्तरम् दुयमानः गच्छन् 'अंतरा से विहं सिया' अन्तरा-मार्गमध्ये तस्य गच्छतः साधोः विहम् - अटवी रूपम् जनशून्यदीर्घमार्गः स्यात् ' से जं पुण विहं जाणिज्जा' स साधुः यदि पुनः विहम् अटवीरूपम् जनशून्यदीर्घपन्थानं जानीयात् 'इमंसि खलु विहंसि' अस्मिन् खलु विहे महावीरूपे जनशुन्यदीर्घमार्गे 'बहवे आमोसगा' बहवः अनेके आमोषकाः चौराः 'उवगरण - पडियाए' उपकरणप्रतिज्ञया वस्त्राद्युपकरणला भेच्छया 'संपिंडिया उवागच्छिज्जा' संपिण्डिताः एकत्रीभूय उपागच्छेयुः तर्हि 'नो तेसिं भीओ उम्मग्गेण गच्छिज्जा' नो तेषां - तेभ्यः चौरादिभ्यः भीतः त्रस्तः सन् उन्मार्गेण उत्पथेन गच्छेयुः 'जाव समाहीए' यावत्retirgaः अविमनस्क एव समाहितः समाधियुक्तः सन् 'तओ संजयामेव ' ततः याने शान्तचित्त होकर 'तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जिज्जा' संयमपूर्वक ही एक ग्राम से दूसरे ग्राम गमन करे जिस से संयम की विराधना नहीं हो 'सेभिक्खु वा भिक्खुणी वा, गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया' वह पूर्वोत भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाते हो और दूसरे ग्राम जाते हुए उस साधु के मार्ग में यदि कोई चिहअर्थात् बीहर जंगल हो और 'से जं पुण विहं जाणिज्जा' यदि बीहर जंगल को इस प्रकार वक्ष्यमाण रीति से जानले कि 'इमंसि खलु विहंसि' इस बीहर भयंकर जंगल झार में 'बहवे आमोसगा' बहुत से आभोषक चौर डाकू वगैरह 'वागरण पड़ियाए संपिंडिया उवागच्छिज्जा' वस्त्रादि उपकरण को ले लेनेकी इच्छा से एकत्रित होकह झुण्ड के झुण्ड आजाते हैं या आनेवाले हैं ऐसा जान ले तो भी 'णो तेर्सि भीओ उम्मग्गेण' उन चौर डाकूओं का भय से त्रस्त होकर साधु और साध्वी उन्मार्ग से 'गच्छिज्जा' नहीं जाय अपितु 'जाव समाहीए' यावत् अल्प उत्सुक होकर ही उदासीनता के साथ शान्तचित्त होकर और
'गामागाम दुइज्जिज्जा' येऊ गामथी जीरे गाम वु डे भेयी सत्यभनी विराधना थाय नहीं'. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' थे पूर्वोत संयमशील साधु अने साध्वी 'गामागाम दूइज्मा ४ गामयी मी गाम तां 'अंतरा से विहं सिया' भना भार्गभां गाढ मंगल भावे 'से जं पुण विहं जाणिज्जा' अने ते मंगलने या उपायां भावनार रीते ते भो 'इम सि खलु विहंसि' मा लयपुर सेवा गाढ मंगलभां 'बहवे ओमोसगा' ध|| आभोष अर्थात् थर लुटारामा 'उगरणवडियाए' पखाहि ५सेवानी थी 'सपिंडिया' सेठी थाने 'उवागच्छिज्जा' भापी रह्या छे. तेभ भगे तो पशु 'णो तेसिं भीओ उम्प्रग्गेण गच्छिज्जा' मेयर लुटारामोना डरथी मय लीत थने साधु है साध्वी भवणा रस्तेथी वु' नहीं 'जाव समाहीए' परंतु यावत् અલ્પ ઉત્સુક થઈને ઉદાસીનપણાથી શાંતચિત્ત રાખીને અને સમાહિત અર્થાત્ સમાધિ
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪