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________________ मर्ममकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ सू. ६० शय्येषणाध्ययननिरूपणम् १७५ उच्चारप्रस्रवणभूमिम् मलमूत्रादि प्रतिक्षेपस्थानम् 'पडिले हिज्जा' प्रतिलिखेत्-सम्यक्तयां पश्येत् अन्यथा 'केवलीबूया-आयाणमेयं' केवली-केवलज्ञानी भगवान् तीर्थङ्करः ब्रयात ब्रवीति उपदिशति यत् आदानमेतत्-आदानं कर्मबन्धकारणम्, एतत्-मलमूत्रादिपरित्याग भूमेरनवलोकनम्, तथाहि 'अपडि लेहियाए उच्चारपासवणभूमिए' अप्रतिलिखितायाम्अनवलोकितायाम् उच्नारप्रस्रवणभूमौ-मलमूत्रादि परिष्ठापनस्थाने पूर्वमदृष्टे सतीत्यर्थः 'भिक्खू वा भिक्खुणी वा' भिक्षु व भिक्षुको वा 'राओ वा पियाले वा' रात्रौ वा, विकाले या विकटसमये वा मेघाच्छन्नादिना अन्धकारावृते इत्यर्थः 'उच्चारपासवर्ण' उच्चारप्रस्त्रवणम् मलमूत्रादिकम् 'परिहवेमाणे' परिष्ठापयन् मलमूत्रादीनां परिष्ठापनं कुर्वन् ‘पर लेज्ज या पपडेज्ज वा' प्रस्खलेद् वा-अन्धकारावृतत्वात् स्तम्भादिना आहतः सन् प्रस्खलितो या तंदुरस्त हाथपांव वाले साधु एक ग्राम से दूसरे ग्राम विहार करने वाले हो परंतु संयमशील उन सभी साधुओं को 'पुव्वामेव णं पण्णरस्स उच्चारपासवणभूमि' मलमूत्रादि त्यागकरने से पहले ही मलमूत्र परित्याग भूमिका 'पडिलेहिजा' प्रति लेखन कर लेना चाहिये क्योंकि 'केवलीवूया आयाणमेयं केवली भगवान् महावीर स्वामी कहते हैं कि प्रतिलेखन के बिना मलमूत्रादि परित्याग भूमि में मलमूत्रादि परित्याग करना आदान कर्म बंधन का कारण होता है 'अपडिलेहियाए प्रतिलेखना किये बिना की 'उच्चारपासवणभूमिए' मलमूत्रोत्सर्ग की भूमि में 'भिक्खू वा भिक्खुणी बा' साधु या साध्वी 'राओ वा चियाले वा' रात्रि में या विकाल में 'उच्चारपासवणं परिहवेमाणे' मलमूत्रादि के परित्याग करने के स्थान को पहले ही नहीं देख भाल करके मलमूत्रादि परित्याग करता हुआ यह साधु या साध्वी 'पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा' प्रस्खलित हो जायेगा या गिरजायगा, अर्थात् मलमूत्रादि परित्याग स्थान को देखभाल किये बिना ही यदि साधु यहां पर मलमूत्रादि का परित्याग करता है तो अन्धकार वगैरह के कारण मे तमाम साधुमाये मात्र त्या ४२ai 'पुवामेव णं पण्णस्स' पहेi or 'उच्चारपासवणभूमि' भवभूत्र त्या ४२वनी भूमिनु पडिले हिज्जा' प्रतिमन श. 'केचली. घूया' । प्रभारी पक्षी भगवान महावीर स्वामी युं छे , प्रतिमन र्या विना १ मत भूहिना त्याग ४२वानी भूमिमा साहिन त्या ४२ ते 'आयापामेय' माहान भय ४२९४ छे. तेथी 'अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमिए' साधु भने सायीले 'राओ वा वियाले वा' रात्र ५५५समय पर भसभून त्याग १२याना स्थानने परथी २२ ते 'भिक्ख वा भिक्खुणी वा' साधु साध्या 'उच्चार पास. वणं परिंदुवेमणे' मात्र त्या ४२ ते 'पयलेज्ज वा पवडेज वा' मालित थाय छे. અથવા પતિત થાય છે. અર્થાત્ મલમૂત્રનો ત્યાગ કરવાના સ્થાનને જોયા વિના જ છે. સાધુ કે સાધ્વી મલમૂત્રાદિને ત્યાગ કરે તે અંધકાર વિગેરેના કારણે ખાડા ટેકરા વિગેરેથી श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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