________________
मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतकंस्घ २ उ. २ स्. २९ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ०१ सभा वा प्रपा वा सुधाकर्मान्तानि वा बद्धकर्मान्तानि वा वल्कलकर्मान्तानि या श्मशानकर्मा. तानि वा शून्यागारकर्मान्तानि वा गिरिकान्तानि वा कन्दराकान्तानि वा शैलोपस्थापन कर्मान्तानि वा भवनगृहाणि वा 'एयप्पगारं निग्धोसं' एतत्प्रकारम्-उपर्युक्तरूपम् निर्घोष शब्दं 'सोचा निसम्म' श्रुत्वा निशम्य हृदये अवधार्य 'जे भयंतारी' ये भयत्रातारः भगवन्तो जैन मुनयः 'तहप्पगाराई तथाप्रकाराणि पूर्वोक्तरूपाणि 'आएसणाणि वा' आयसानि वा (आदेशनानि) 'जाव भवणगिहाणि' यावत आयतनानि वा देवकुलानि वा भवनगृहाणि वा 'उपागच्छंति' उपागच्छन्ति 'उवागच्छित्ता' उपागम्य उपस्थाय 'इयरेयरेहिं पाहुडेहि' अथवा आयतनों को अर्थात् मठमन्दिरों का या देवकुलों को या यावत् सभागृहों को या प्रपा-पानीय शालाओं को या सुधा चूना बनाने के गृहों को या बड़े चमडे का चरस मशक वगैरह बनाने के गृहों या वल्कल छाल वगैरह से बनाने जाने वाले टोकरी वगैरह के गृहों या स्मशान गृहों को शुन्यागार के रूप में बनाये गये घरों को चर्म या पर्वतों के ऊपर के भाग में बनाये जाने वाले घरों को या कन्दरा-गुफा के अन्दर बनाये जाने वाले घरों या पत्थरों के टुकडों से बनाये जाने वाले मण्डपों को अथवा भवन गृहों को अपने वास्ते बनबाने लगे ऐसा-'एयप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म' इस प्रकार का निर्घोष-शब्दों को सुनकर और हृदय में अवधारण विचार कर जो ये-'जे भयंतारो' भयत्राता सांसारिक भय से त्राण करने वाले जैन साधुगण 'तहप्प. गाराइं आएसणाणि वा, जाव भवगिहाणि वा' इस तरह के आयसगृह वगैरह में यावत् भवन पर्यन्त गृहों में 'उवागच्छंति' रहने के लिये आजाते हैं
और 'उवागच्छिता इयरेयरेहिं आकर परस्पर 'पाहडेहि वस॒ति' उपायन भेट के में प्राप्त इन भवन गृहों को उपयोग में लाते हैं 'अयमाउसो' हे आयुष्मन् બનાવવાના ગૃહો અથવા ચામડાના મશક વિગેરે બનાવવાના ગૃહ અથવા વલ્કલ-છાલ વિગેરેથી બનાવવામાં આવતી રેપલી સાદડી વિગેરેના નિર્માણ ગૃહો અથવા સ્મશાન ગૃહે અથવા શૂન્યાગારરૂપે બનાવેલ ઘરે અથવા પર્વતની ઉપરના ભાગમાં બનાવવામાં આવેલ ગૃહ અથવા ગુફાની અંદર બનાવવામાં આવનાર ગૃહો અથવા પત્થરોથી બનાयामा मापना२ मपोन 141 मन गडाने मारे माट मनापी शु. 'एयप्पगारं निग्धोसं सोच्चा निसम्म' 20 ४।२। शहाने समाजाने माने यम तेन धा२६५ मात् विया२ ४शन 'जे भयंतारो तहप्पगाराई' २ ॥ मयता थेट , ससाना मया भयाना२ जैन साधु ॥ प्रारना 'आएसणाणि वा' सारस पत्थरना नावेस विरे गृडामा 'जाव भवणगिहाणि वा' यावत् मयन पय-तना डामा ‘उवागच्छंति' पास रे छ मन 'उवागच्छित्ता' पास ४शने 'इयरेयरेहिं पाहुडेहिं वटुंति' ५२०५२ लेट ३३ प्राप्त थये। 40 41 डान भी अतिथि साधुन। ६५योगमा देवराव छ. 'अयमाउसो'
आ० ५१
श्री मायारागसूत्र :४