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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. २ सू० २३ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३८१
छाया-'स भिक्षु भिक्षुकी वा स यदि पुनरेवम् उपाश्रयं जानीयात् तृणपुजेवु वा पलालपुञ्जेषु वा अल्पाण्डम् अल्पप्राणम् अल्पबीजम् अल्पहरितम् यावत् अल्पसन्तानकम् तथाप्रकारे उपाश्रये स्थानं वा शय्यां वा निपोधिका वा चेतयेत् ।। सू० २३॥ ___टीका-क्षेत्रशय्यामेवाधिकृत्य पूर्वोक्तदोषरहिते उपाश्रये वसतिविर्षि प्रतिपादयितुमाह'से भिक्खू वा भिक्खुगी वा' स भिक्षु भिक्षुकी या ‘से जं पुण एवं उवस्सयं जाणिज्जा' स साधुर्यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणस्वरूपम् उपाश्रयं जानीयात्, कीदृशमित्याह 'तणपुंजेसु वा' तृणपुग्नषु वा-घाससमुदायेषु 'पलालपुंजेसु वा पालाल पुजेषु वा 'अप्पंडे' अल्पाण्डम् अण्डरहितम् अल्पशब्दस्थ ईषदर्थकतया नथै पर्यवसानात्, 'अप्पपाणे' अल्पप्राणम्-प्राणिरहितम् 'अप्पबीए' अल्पबीजम् बीजरहितम् 'अप्पहरिए' अल्पहरितम्, अल्पोत्तिङ्गपनकदकमृत्तिका रहितम् अल्पसन्तानकम् लूतातन्तुजाकरहितम् एवंविधम् उपाश्रयं यदि जानीयात् वह
टीकार्थ-क्षेत्र शय्या को ही लक्ष्य कर पूर्वोक्त दोषों से रहित उपाश्रय में साधु और साध्वी को रहने के लिये प्रतिपादन करते है-'से भिक्खू या भिक्षुणी या से जं पुण एवं उचरसयं जाणिज्जा' वह पूर्वोक्त भिक्षुक संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से उपाश्रय को जानले कि 'तणपुंजेसु या' इस उपाश्रय के तृणपुत्रों में अर्थात् सूखा हुआ घासों के समूह में 'पलाल पुंजेसु वा' तथा पलाल पुञ्ज में पुारा नारा उण्टल के समूह में-ढेर में 'अप्पंडे' थोडे ही अण्डे है अर्थात् बिलकुल ही अण्डे नहीं है, एवं 'अप्पपाणे थोडे ही प्राणी है याने छोटे छोटे चिटीपिपरी वगैरह प्राणी भी नहीं है तथा-'अप्पवीए' अल्पषीज थोडे ही बीज है अर्थात् अंकुर पैदा करने वाले बीज भी नहीं है, तथा 'अप्पहरिए' थोडे ही हरित हरेभरे घास भी नहीं है
और-'जाव अप्प संताणए'-यावत् थोड़े ही ओषकण है, अर्थात् ओषकण भी नहीं है इसी प्रकार अल्पत्तिंग-थोडे ही चिटीपिपरी वगैरह प्राणी भी है थोडे
ક્ષેત્રશાને જ ઉદ્દેશીને પૂર્વોક્ત દેષ રહિત ઉપાશ્રયમાં સાધુ અને સાધ્વીને નિવાસ કરવાનું સૂત્રકાર સમર્થન કરે છે.
टी- 'से भिक्ष वा भिक्खुगी वा' ते पूछित माप साधु मन भा५ सयी 'से जं पुण एवं उपस्सय जाणिज्जा' न माने । १६५ मा शत पाश्रय . पाम आये 'तणपुजेसु वा' सुसा धासोना सामो तथा 'पलालपुंजेसु वा' ५२॥णन!
सामा 'अप्पंडे 'अप्पपाणे थी! १ १ छ भने यो १ प्रालियो छे. अर्थात् है 01 131 भी पिणेरे पास नथी, तथा 'अप्पबीए' मी मात 231 मी छे. पर्थात् १२ अ५- १२॥२ मीया पण नशी. तथा 'अप्पहरिए' सीसा पास ५ नथी. 'जाव अप्पसंताणए' भने यात यो ४ ४९ छे मर्यात् ५। ५५ નથી. એ જ પ્રમાણે-અપઉસિંગ–કીડી વિગેરે જીવજંતુ ચેડા જ છે. અને ચેડા જ પનક
श्री सागसूत्र :४