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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सू० २१-२२ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३७९ कायोत्सर्गरूपम्, शय्यां वा संस्तारकरूपाम्, निषीधिकां वा स्वाध्यायभूमि वा 'चेतेज्जा' चेतयेत्-कुर्यात् ।। सू० २१ ॥
मूलम्-से भिक्खू वा भिक्खुगी वा से जं पुण एवं उवस्मयं जाणिज्जा तणपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा, सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सोसे सोदए जाव ससंताणए तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेएज्जा ॥सू० २२॥ ___ छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा स यदि पुनरेवम् उपाश्रयं जानीयात्-तृणपुजेषु वा पलालपुब्जेषु वा साण्डम् सप्राणम् सबीजम् सहरितम सौषम् सोदकम् यावत् ससन्तानकम् , तथाप्रकारे उपाश्रये नो स्थानं वा शय्यां या निषीधिकां वा चेतयेत् ॥ सू० २२॥ ____टीका-क्षेत्रशय्यामेवाधिकृन्य विशेषं वक्तुमाह-‘से भिक्खू वा भिवखुणी वा' स भिक्षु भिक्षुकी वा 'से जं पुण एवं उबस्सयं जाणिज्जा' स भावभिक्षुर्यदि पुनरेवम् वक्ष्यमाणस्वरूपम् उपाश्रयं जानीयात् कीदृशमुपाश्रयं जानीयादित्याह-'तणपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा' तृणपुज्जेषु वा-घाससमूहेषु पलालपुञ्जेषु वा 'सअंडे सपाणे' साण्डम् अण्डयुक्तम् सप्राणम् प्राणिसहितम् 'सबीए' सबीजम् बीजसहितम्, 'सहरिए' सहरितम् हरितशाद्वलदूर्वादि रिक उपाश्रय में-'णो ठाणं वा सेज्जं वा नसीहियं वा चेतेन्जा' स्थान शय्या यानिषीधिका नहीं करे ॥२१॥
फिर भी क्षेत्र शय्या को ही लक्ष्य कर कुछ विशेष बात बतलाते हैटीकार्थ-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण एवं उवस्मयं जाणिज्जा'
वह पूर्वोक्त भिक्षुक और भिक्षुकी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से उपाश्रय को जान लेकि-'तणपुंजेसु वा पलालपुंजेसु वा' तृणपुञ्ज में अर्थात् घास के ढेर में या पलाल पुञ्ज में पुअरनार डण्टल वगैरह में अर्थात् घास और पुथार वगैरह के समूह से भरा हुआ यह उपाश्रय 'सअंडे सपाणे' अण्डों से युक्त है एवं प्राणियों से भरा हुआ है 'सबीए सहरिए' एवं बीजों से युक्त है तथा हरे भरे मे सास छ , 'तहप्पगारे उवस्सए' भावाना सावि निवासस्थानमा ‘णो ठाणं वा सेज्जं वा' स्थान शय्या, निवाधि। ४२वी नही ॥ सू० २१ ॥
ક્ષેત્ર શય્યાને જ ઉદ્દેશીને વિશેષ કથન કરતાં સૂત્રકાર કહે છે. – ___A:-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते alxn सयमशील साधु मने साबी से जं पुण एवं जाणिज्जा' a ॥ पक्ष्यमा शते याश्रयन one से 'तणपुंजेसु वा पलालपुजेसु वा' घासन सामi , ५२१ना सामर्थात् घास मने ५२२ विगेरेथा मरे 240 पाश्रय ‘सअण्डे' माथी युद्धत छ. 'सपाणे' प्रायोथी युत छ 'सबीए' मीयामाथी युक्त छ. 'सहरिए' सीसातरीथा लरेस छ. 'सोसे' मोन
श्री सागसूत्र :४