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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० ११ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ३४९ एस पइण्णा' अथ भिक्षूणां साधूनां कृते पूर्वोपदिष्टाः पूर्वं तीर्थकुदुक्ता एषा संयमनियमपालनरूपा प्रतिज्ञा - कर्तव्यपालननियमो वर्तते 'एस हेऊ' एष - हेतुः 'एयं कारणे' एतत् कारणम्, 'एस उवदेसे' एष उपदेशः जीवादिहिंसात्यागपूर्वकं संयमपालनं कर्तव्यमिति तीर्थकृदुपदेशः भावः, तदाह - 'जं तहपगारे उबस्सए' यत् तथाप्रकारे - उपर्युक्तरूपे उपाश्रये 'अंत लिक्खजाए' अन्तरिक्षजाते - अन्तरिक्षस्थिते द्विभूमिकादौ 'णो ठाणं वा सेज्जं वा fuसीहियं वा' नो स्थानं वा कायोत्सर्गरूपं, शय्यां वा संस्तारकम्, निषीधिकां वा स्वाध्यायभूमिं चेइज्जा' चेतयेत् कुर्यात्, अन्तरिक्षस्थितोपाश्रयद्वि भूमिकादौ मलमूत्रादित्यागे उपgatत्या प्राणिजीवादीनां हिंसा संभवेन संयमात्मविराधना स्यात् ।। सू० ११॥ या सत्ताई वा' जीवों को या सत्वों को 'अभिहणिज वा' मार डालेगा, या 'जाब ववरोविज्ज वा' यावत्- विनाशकर डालेगा, किन्तु 'अहभिक्खूर्ण पुव्वो बदिट्ठा एस इण्णा' अथ और भिक्षुकों के लिये भगवान् वीतराग महावीर स्वामीने पहले ही संयम नियमका पालन करने की प्रतिज्ञा बतलायी हैं और 'एस हेऊ' यही भगवान् का हेतु या 'एयं कारणे' कारण मी यही बतलाया है कि साधु और साध्वी को जीवों की हिंसा का त्याग पूर्वक ही संयम नियमका पालन करना चाहिये । अर्थात् भगवान् महावीर प्रभुने साधु साध्वी के लिये 'एस उबदेसे' यहीं उपदेश किया है कि जीव मात्र की हिंसा त्याग पूर्वक ही संयम का पालन करना चाहिये इसलिये 'जं तहपगारे उवस्सए' इस प्रकार के उपाश्रय में 'अंतलिक्खजाए' अन्तरिक्ष- आकाश में स्थित दो मजला वगैरह ऊपर भाग में 'णो ठाणं वा' कायोत्सर्ग रूप ध्यान या 'सेज्जं वा णिसीहियं वा' शय्या - संस्तारक-संधरा 'चेइज्जा' या स्वाध्याय के लिये स्थान ग्रहण नहीं करे क्योंकि उपाश्रय के ऊपर के भाग में दुमजले वगैरह पर मलमूत्रादि का 'पाणि वा भूयाई वा' आशियाने भूताने 'जीवाई वा सत्ताई वा' भवन सत्वनि 'अभिहणिज्ज वा' भारी नामशे अथवा 'जाव ववरोविज्ज वा' यावत् तेमनो विनाश ४२, परंतु 'अह भिक्खुणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा' तेथी साधु भने साध्वीओ भाटे वीतરાગ ભગવાન્ મહાવીર સ્વામીએ પહેલેથી જ સયમ નિયમાનુ પાલન કરવાની આજ્ઞા छे. 'एसहेउ एयं कारणे' अने से भगवाननो उपदेश अने हेतु तथा भरायचा એજ બતાવેલ છે કે સાધુ અને સાધ્વીએ જીવાની હિંસાના ત્યાગ પૂર્ણાંક જ સયમ नियमो पासन १२वु लाये. तेथी 'तहष्पगारे उवहसए' तेवा प्रारना उपाश्रयमां हैं ने 'अंत लिक्खजाए' आश तर स्थित मे भाविगेरे उपरना लागभां 'णो ठाणं वा, सेज्जं वा' येत्सर्ग ३५ ध्यान अथवा शय्या संथारो ! स्वाध्याय भाटे स्थान ગ્રહણ કરવુ' નહી' કેમ કે ઉપાશ્રયના ઉપરના ભાગમાં એ મજલા વિગેરેની ઉપર મલમૂત્રાદિનો ત્યાગ કરવાથી ઉક્ત પ્રકારથી પ્રાણ જીવજં તુઓની હિં'સા થવાની સ’ભાવનાથી શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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