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आचारांगसूत्रे उच्छुमेरगं जाव सिंबलीथालगं वा अप्फासुयं जाव लाभे संते णो पडिगाहिज्जा ॥सू० १०६॥ __छाया-स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा गृहपतिकुलं यावत् प्रविष्टः सन् स यदि पुनरेवं जानीयात-अन्तरिक्षुकं वा, इक्षुगण्डिका वा, इक्षुचोयकं वा इक्षुमेरुकं वा, इक्षुशालकं वा, इक्षु. डालकं वा, सिबलिं वा सिंबलस्थालकं वा अस्मिन् खलु प्रतिग्रहे अल्पे भोजनजाते बहज्झितधर्मके तथाप्रकारम् अन्तरिक्षुकम् इक्षुण्डिकाम, इक्षुचीयकम् इक्ष मेरुका यावत् सिंबली स्थालकम् अप्रामुकं यावत् लाभे सति नो प्रतिगृह्णीयात् ॥ सू० १०६॥
टीका-पिण्डैषणामधिकृत्य इक्षुदण्डादिनिषेधं वक्तुमाह-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स पूर्वोक्तो संयमवान् भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'गाहावइकुलं' गृहपतिकुलम्-गृहस्थगृहम् 'जाव पविढे समाणे' यावत्-पिण्डपातप्रतिज्ञया-भिक्षालाभार्थ प्रविष्टः सन् ‘से जं पुण एवं जाणिज्जा' स भिक्षुः यदि पुनरे। वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् तद्यथा 'अंतरुच्छियं' अन्तरिक्षकम् वा इक्षुपर्वमध्यम् वा 'उच्छुगंडियं वा' इक्षुगण्डिकां वा त्वचारहित सर्वेक्षुखण्ड वा 'उच्छु चोयगं वा' इक्षुच्योतक वा रसरहितेषु त्वचा वा 'उन्छु मेरगं वा' इक्षुमेरुकं वा ____टीकार्थ-पिण्डेषणा को ही लक्ष्यकर इक्षु 'शेडीं' दण्ड वगैरह का प्रतिषेध करते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, गाहावइ कुलं जाव-पबिहे समाणे से जं पुण एवं जाणिज्जा' स-वह पूर्वोक्त भिक्षुक-भाव साधु और भिक्षुकी-भाव साध्वी गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में यावत्-पिण्डपात की प्रतिज्ञा से अर्थात् भिक्षालाभ की आशा से अनुप्रवेश कर, स-वह साधु और साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से जान लेकि-'अंतरुच्छियं था, उच्छुगंडियं वा, उच्छुचो. यगं था, उच्छुमेरगं वा, उच्छुसालगं वा, उच्छुडालगं वा' अन्तरिक्षुक-इक्षु गन्ने का पर्व मध्य भाग को या इक्षु गण्डिका-त्वचा-छिलका से रहित गन्ने का पोर का खण्ड को एवं इक्षु च्योतक-रस रहित गन्ने का छिलकाको, या इक्षु मेरक-रस रहित गन्ने का बाहर का अग्रभाग को एवं इक्षु शालक-गन्ने की शाखा डाल को, या इक्षु शाखा खण्ड-गन्ने की डाल का टुकडा को एवं सिंव.
પિડૅષણને ઉદ્દેશીને શેલડી ખાવાનો નિષેધ કરે છે – टी-'से भिक्खू वा भिक्खुणी या' ते पूरित साधु सापी 'गाहायइकुलं जाव' पति श्रावना घनां यावत् निक्षा सामना २४ाथी 'पविद्वे समाणे' प्रवेश ४शन से जं पुण एवं जाणिज्जा' तमनi oneyामा मेयु मा 'अंतरुच्छियं वा खानी is मर्थात् मध्यममा) 2424। 'इच्छुगंडिय वा' छ। विनानी २२ीना टु४ाने २५५41 'इच्छु चोयग या' २स विनानी साना छाने अथ41 'इछ मेरगं वा' २स विनाना सहन माग तय 'उच्छुसालगं या' सहानी शमाने अथवा 'उच्छुडालगं वा' सहानी in
श्री.माया
सूत्र:४