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आचारांगसूत्रे
कन्दं वा 'भिसं वा' विसं वा पद्मकन्दमूलं वा 'मिसमुणालं' विमृणालं वा - पद्मकन्दोपरिभागस्थित तारूपं 'पोक्ले' पुष्करं वा कमलकेसरं वा पद्मकिञ्जल्करूपम्, 'पोक्खल विभंग वा' पुष्करविभङ्गं वा कमलकन्दं खण्डं वा 'अण्णयरं वा तहप्पगारं' अन्यतरद् वा अन्यद् वा तथाप्रकारम् कमलकन्दादिसदृशम् यत् किमपि कन्दविशेषरूपम् 'आम' आमकम् अपरिपक्वम् 'असत्यपरिणयं' अशस्त्रपरिणतम् - अशस्त्रोपहतम् 'अल्फासुर्य' अप्राकम् सचित्तम् 'जाव' यावत् - अनेषणीयम् - आशा कर्मादिदोषदुष्टं मन्यमानो ज्ञात्वा 'लाभे संते' लाभे सति 'णो पडिगाहिज्जा' नो प्रतिगृह्णीयात् तेषां पद्ममृणाल कन्दादीनाम् अपरिपक्यानाम् अशस्त्रीपहतानां सचित्तत्वेन आधाकर्मादिदोषदुष्टत्वेन लाभे सति संयमात्म विराधकत्वेन साधुभिर्वा साध्वीभिर्वा तानि कमलकन्दमृणालादीनि न ग्राह्याणि इति ॥ सू० ८७ ॥
मूलम् - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं जाव पविट्टे समाणे से जं पुण एवं जाणिजा, अग्गबीयाणि वा, मूलबीयाणि वा, खंधवियाणि वा पोरवीयाणि वा अग्गजायाणि वा, मूलजायाणि वा, खंधया 'उप्पलनालंवा' उत्पलनाल-नीलोत्पलका कन्द है या 'भिसं वा भिसमुणालं वा' विस- मृणाल - कमल कन्द मूल है या विस मृणाल पद्म कन्द का नाल तन्तु है या 'पोक्खलं' पुष्कर-कमल का केशर - किञ्जल्क है अथवा 'पोक्खलविभंगं वा' पुष्कर विभंग - कमल का कन्द या खण्ड है 'अण्णघरं वा तहपगारं' या अन्य कोई दूसरा ही इस तरह का कमल कन्दादि के समान कन्द विषेश है इस प्रकार उस कमल कन्दादि को देखकर या जानकर 'आमगं असत्थपरिणयं' आम-कच्चा तथा अशल्त्रपरिणत - चाकू वगैरह से चीराष्फारा भी नहीं गया है अर्थात् जैसा का तैसा ही नया रूप वाला है ऐसा देखने या समझने से उस कमल कन्दादि को कच्चा तथा अशस्त्रोपहत होने से 'अष्फासुयं जाव' अप्रासुक-सचित्त तथा यावत्-अनेषणीय- आधाकर्मादि दोषों से युक्त समझकर संयम आत्म विराधक होने के कारण 'णो पडिगाहिज्जा' भाव साधु और भाव साध्वी मिलने पर भी उस को नहीं ग्रहण करे ॥ ८७ ॥
वा' मण हुन्छनु भूज होय हे उमज उधना नाम-तंरंतु होय अथवा 'पोक्खल" उभजना डिट होय अथवा 'पोक्खलविभंगं वा' भजनो या मंडे हे. 'अण्णयर' वा तहप्प ગાર' અથવા બીજા કાઈ તેના જેવા ક' વિશેષ હાય એ રીતના એ કમલ કંદ વિગેરેને लेने अथवा लगीने 'आमगं' अथा तथा 'असत्यपरिणय' शस्त्र परिशुरेस न होय अर्थात् मनाते है! तेवु लेषा वामां आवे तेा उभ धाहिने 'अप्फासुर्य'
જ્ઞા' સચિત્ત યાવત્ અનેષણીય આધાકર્માદિ દોષોથી યુક્ત માનીને સંયમ આત્મ વિરાધક होवाथी साधु है साथी भजपा छतां पशु 'जो पडिगाहिज्जा' तेने थह १२पा नहीं सू.८७
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪