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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० २-३ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम् अन्यतरराशौ वा-पूर्वोक्तसदृश प्रासुक निर्जीवस्थले वा गत्वा तदेव सूचयभाह-तथाप्रकारेपूर्वोक्तसमाने प्रासुकस्थण्डिले अपक्रम्य इत्यर्थः, तद्-अवशिष्टमाहारजातं प्रत्युपेक्ष्य प्रत्युपेक्ष्य-परिलेह्य परिलेह्य-पौनः पुन्येन परिलेइनं कृत्वा, अक्षिभ्यां सम्यनिरीक्ष्य इत्यर्थः, सदोरकमुखवस्त्रिकासहितनेत्राभ्यां परितो निरीक्षणं विधाय, रजोहरणादिना च प्रमृज्य प्रमृज्य-पुनः पुनः प्रमार्जनं कृत्वा, तत:-तदनन्तरम् परिलेहनप्रमार्जनानन्तरमित्यर्थः संयत एव-सम्यग् उपयुक्त एव परिष्ठापयेत्-शुद्धाशुद्धाहार पुञ्जभागपरिकल्पनया परित्यजेदित्यर्थः। स भावभिक्षुः मुक्तपीतावशिष्टं तदाहारजातं उपर्युक्तस्थले सम्यग् उपयोगपूर्वक एय त्यजे दित्यर्थः ॥ सू०२ ॥ इति ।
मूलम्-से भिकरवू वा, भिक्खूणी वा, गाहावइकुलं पिंडदायपडियाए अणुपविट्रे समाणे, से जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा कसिणाओ सासिआओ अविदलकडाओ अतिरिच्छछिन्नाओ, अवोच्छिन्नाओ तरुजहां कि हाडकाओं का ढेर है ऐसे स्थल में, या 'तुसरासिसि वा' तुषराशौ या जहांकि घुस्सा डन्टल वगैरह का ढेर है ऐसे स्थल में या 'सुक्कगोमयरासिसि वा' शुष्कगोमयराशी वा-जहां कि सूखे हुए गोयम छाणा वगैरह का ढेर है 'अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थडिलंसि' अन्यतरस्मिन् वा तथाप्रकारे स्थण्डिले-दूसरे का इस प्रकार के स्थल में 'पडिलेह पडिलेहिय' प्रतिलेह्य प्रतिलेह्य-चार चार प्रतिलेखन करके 'पमज्जिय पमज्जिय' प्रमृज्य प्रमृज्य-बार बार उसे प्रमार्जन करके अर्थातू उसे सदोरक मुखवस्त्रिका वाले साधु मुनि आखों से अच्छी तरह निरीक्षण कर और रजोहरणादिसे उसे प्रमाजेन करके 'तओ संजयामेव परिद्वपिज्जा' तता-तदनन्तर प्रतिलेहन और प्रमाजन करने के बाद संयत एव उपयुक्त होकर ही उपयोगावस्था में ही रहते हुए परिष्ठापयेतू-परित्याग, अर्थात् भोजन पान करने से बचे हुए आहार जात को निर्जीवादि स्थलों में जाकर सम्यग् उपयोग पूर्वोक्त ही परित्याग करें ॥मू०२।। ज्या मुसाना ढगसोसाय सेवा २०१८ मा 'सुक्क गोमयरासि सि वा' या सुसा छायाना गती ।य -424। 'अण्णयतरंसिवा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' मा सेवा प्रा२ स्यामा 'पहेलिय पहेलिय' पार वा२ प्रतिमना शन ‘पमज्जिय पमज्जिय' पा२पा२ तेनु प्रमानन કરીને અર્થાત્ સદેરક મુખત્રિકાવાળા મુનિએ તેનું આંખેથી સારી રીતે નિરીક્ષણ કરીને भने २२३२४ाहिया तेनु प्रभान ४२ 'तओ संजयामेव परिदृविज्जा' प्रतिमन भने પ્રમાર્જન કર્યા બાદ સંવત- ઉપયુક્ત થઈને જ ઉપયોગાવસ્થામાં જ રહીને પરિત્યાગ કરે અર્થાત, આહાર પાણી કરવાથી બોલા આહારને નિજીવ સ્થળમાં જઈને સમ્યફ ઉપગપૂર્વક તેને ત્યાગ કરે. સૂ૦૨
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श्री.माया
सूत्र:४