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आचारांगसूत्रे 'अच्चुसिणं' अत्युष्णम् 'अस्संजए' असंयतः-गृहस्थः 'भिक्खुपडियाए' भिक्षुप्रतिज्ञया-साघवे भिक्षादानार्थ शीतलं विधातुम 'सुप्पेण वा शूर्पण वा 'विहुयणेण वा वीजनेन वा-व्यजनेन 'तालियंटेण वा तालवृन्तेन वा-तालपत्रव्यजनेन 'पत्तेण वा' 'पत्रेण वा-पल्लवरूपेण 'साहाए या' शाखया वा 'साहाभंगेण वा शाखाभङ्गेन वा-लघुशावारूपेण 'पिहुणेण वा' पिच्छेन वामयूरपिच्छकृतव्यजनेन 'पिहुण हत्थेण वा' पिच्छहस्तेन वा-पिच्छव्यजनेन 'चेलेण वा' चैलेन वा-वस्त्रेण, 'चेलकण्णेण वा' चैलकर्णेन वा वस्त्राञ्चलेन, 'हत्थेण वा' हस्तेन वा-करेण 'मुहेण या' मुखेन वा-वदनेन 'फुमिज्ज वा' फूत्कुर्यात्-फूत्कारं विदध्यात्. 'वीइज्ज वा' वीजयेद वा व्यजनेन पवनं सञ्चारयेत वा, ‘से पुवामेव आलोइज्जा' स-भावभिक्षुः भिक्षुकी या पूर्वमेव भिक्षादानात्प्रागेव आलोचयेत्-ध्यानपूर्वकं यतनां कुर्यात्, आलोच्य एवं ब्रूयात्, 'आउसोत्ति या, भइणित्ति वा' हे आयुष्मन् ! इति वा, हे भगिनि ! इति वा संबोध्य अच्चुसिणं' अशनादि चतुर्विध आहार जात अत्यन्त गरम है इसलिये उस अत्यन्त गरम अशनादि चतुर्विध आहार जात को 'असंजए भिक्खूपडियाए' असंयत गृहस्थ भिक्षुकी प्रतिज्ञा से-साधु को देने की इच्छा से 'सुप्पेण या' शूर्प-शूप से या 'विहुयणेण वा तालियं टेणवा' व्यजन-पंखा से या ताल पत्र का पंखा से या 'पत्तेणवा साहाएवा' पल्लव से या शाखा-डाल से या 'साहा भंगे णया' छोटी-शाखा-छोटी डाल से या 'पिहुणेण वा' पिच्छ-मोर की पांख से बना हुआ पंखा से या 'पिहुणहत्थेण वा' पिच्छ हस्त से या 'चेलेणवा चेलकण्णे. ण चा' वस्त्र से या वस्त्राञ्चल से या 'हत्थेण वा मुहेण वा हाथ से या मुख से फकेगा अर्थात् 'फुसिज्जावा' फुक कर ढण्ढा करेगा अथवा 'वीएज्ज वा पंखा से होक कर पवन संचालन द्वारा ठण्ढा करेगा, इसलिये 'से पुत्वामेव आलोइज्जा, यह पूर्वोक्त भाव साधु और भाव साध्वी भिक्षा देने से पहले ही ध्यान पूर्वक यतना करे और विचार कर इस प्रकार वक्ष्यमाणरीति से सम्बोधन कर कहे अर्थात 'आउसोत्ति 'भइणित्ति' हे आयुष्मन् श्रावक ! या हे भगिनि ! बहिन! गरम छ त तवा ५४२ना गरम माडार जतने 'असंजए' असयत-स्थ 'भिक्खु पडियाए' साधुन भिक्षा माया त ४२५। 'सुप्पेण वा' सु५४ाथी अथवा 'विहुयणेण वा' माथी अथवा 'तालियंटेण वा ता पत्रथा मगर 'पत्तेण पानाथा 'साहाए वा शामाथी वृक्षनी थी 'साहाभंगेण वा' मवानानी माथी (साथी) 'पिहुणेण वा' अथवा पीछायी अर्थात मार पिछथी अथवा 'पिहुणहत्थेण वा डायमा पीछ। डाय तेवा डायथी 'चेलेण वा' ५खथी अथवा 'चेलकण्णेण वा' वस्त्रना छेथी मथवा 'हत्थेण वा' यथी 'मुहेण वा' भुमथी 'फुमिज्जा वा' ४ सयात् टीन 3 रे मया 'वीइज्ज वा' ५मा विगेरे वा। पचननामा ४३ अरे तो 'से पुवामेव आलोइज्जा' मा साधु अगर सोयी अस्ये ભિક્ષા આપ્યા પહેલાં જ ધ્યાનપૂર્વક યતન કરે અને વિચાર કરીને આ રીતે સંબોધન
श्री सागसूत्र :४