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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. ९ अ. १५ भावनाध्ययनम् । _ १०९७ आत्मानश्च-स्वात्मानम्, लोकं च अभिसमीक्ष्य केवलज्ञानद्वारा ज्ञात्वा 'पूच्वं देवाणं धम्म माइक्खइ' पूर्व-प्रथमं देवानां धर्मम् आख्याति-उपदिशति 'तो पच्छा मणुस्साणं ततः पश्चात् देवानां धर्मोपदेशानन्तरम् मनुष्यागाम् धर्मोपदेशं करोतीत्यर्थः 'तओणं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु-धर्मोपदेशानन्तरम् श्रमणो भगवान् महावीरः 'उप्पन्ननाणदसणधरे' उत्पन्नज्ञानदर्शनघर:-समुत्पन्नालज्ञानदर्शनधारकः 'गोगपाईणं समणाग निगाथाणं' गौत. मादीनां श्रमणानाम् निर्ग्रन्थानाम् गणधराणाम् मुनीमान् पंच महव्वयाई समावरणाई' पञ्च महावतानि-प्राणातिपात-मृपावाद-अदत्तादान -मैयुन-(अब्रह्म वर्य) परिग्रहविरमणहुए केवलज्ञान और केवलदर्शन द्वारा 'अपाणं च लोग' अपने आत्मा को और लोक को अच्छी तरह 'अभिसमिक्ख' अभिसमीक्षण कर याने जानकर और देखकर 'पुव्वं देवाणं धम्ममाइक्खइ' सब से पहले देवों को धर्मोपदेश किया अर्थात् धर्म का मर्म बतलाया याने धर्म क्या चीज है इसका रहस्य समझाया 'तो पच्छा' उसके बाद अर्थात् भवनपति वगैरह वैमानिक देवों को धर्मोपदेश करने के बाद 'मणुस्साणं' मनुष्यों को धर्मोपदेश किया याने अच्छी तरह से मनुष्यों को धर्मोपदेश किया याने अच्छी तरह से मनुष्यों को भी धर्म का तत्व समझाया 'तओणं' देवों को और मनुष्यों को धर्मोपदेश करने के बाद 'समणे भगवं महावीरे' श्रमण भगवान् वीतराग वर्द्धमान श्री महावीर स्वामीने 'उपन्न नाणदसणधरे' केवलदर्शन को धारण करते हुए-'गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं' गौतमस्वामी वगैरह श्रमण निग्रंथों को याने गौतमस्वामी आदी गणधर मुनियों को भावना सहित याने प्रत्येक वक्ष्यमाण स्वरूप पंच महन्वयाई पांच पांच 'स भावणाई' भावनाओं के साथ पञ्च महावतों को अर्थात् प्राणातिपात, मृपावाद अदत्तादान मैथुन (अब्रह्मचर्य) और परिग्रह विरमण रूप अपरिग्रहों को तथाच अभिसमिक्ख' पन्न. ये श्रे०४ ज्ञान भने उ4शन धारण ४शन કેવળજ્ઞાન અને કેવળદર્શન દ્વારા પિતાના આત્માને અને લેકને સારી રીતે અભિ क्षY ४श अर्थात Mela मने इभाने 'पुव्वं देवाणं धम्ममाइपखइ' सौथा ५४i हेवाने ५५देश - अर्थात धर्म शु. परतु छ? तेनु २७५ रोमाने समन०युं, 'तओ पच्छा मणुस्साणं' ते ५छी अर्थात मनपति विगेरे वैमानि४ हेपे ने धनु २७१५ समता પછી મનુષ્યને ધર્મોપદેશ કર્યો અર્થાતું મનુષ્યને પણ ધર્મનું રહસ્ય સારી રીતે સમજાવ્યું. 'तओ णं समणे भगवं महावीरे' । भने मनुष्याने पपहे॥ माया पछी पीत। भगवान श्री महावीर स्वामी 'उप्पण्णणाणदंसणधरे' ज्ञान भने १४ धार ७रीन 'गोयमाईणं समणाणं गिगंथाणं' श्रीगौतमस्वामी विगेरे गएशने श्रम निय थाने अर्थात् श्री गौतमक्षामा विगैरे ग५२ भुनियाने 'पं हव्वयाई सभावणाई' ભાવના સહિત અર્થાત્ દરેક વક્ષ્યમાણ રાતની પાચ પાંચ ભાવના સાથે પાંચ મહાવ્રતને आ० १३८ श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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