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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० ९ अ. १५ भावनाध्ययनम् १०९१ 'वियत्ताए पोरिसीए' द्वितीयायां पौरुष्याम्-व्यक्तायां वा पाश्चात्यपौरुष्याम् मध्याह्नकालानन्तरमित्यर्थः 'जंमियगामस्स नयरस्स' जम्भिकग्रामस्य नगरस्य 'बहिया नईए उज्जुवालियाए' बहिस्तात्-बहिर्भागे ऋजुवालुकायाः ऋजुवालुकानाम्न्याः नद्याः 'उत्तरकूले' उत्तरकूले-उत्तरतटे 'सामागस्स गाहावइस्स' श्यामाकस्य-श्यामाकनाम्नः गृहपते:-गृहस्वामिनः 'कट्ठकरणंसि' कृष्ट करणे -क्षेत्रे 'उडूंनाणू अहोसिस' ऊर्ध्वजानु-अधः शिरस:-कृतोर्ध्वजानुअधोमस्त कस्य 'झाण कोट्ठोवगयस्स' ध्यानकोष्ठोपगतस्य-ध्यानरूपकोष्ठमुपगतस्य प्राप्तस्य भगवतो महावीरस्य ‘वेयावत्तस्स चेइयस्स' व्यावृत्तस्य-वैयावृत्यस्य वा नाम्नः चैत्यस्य उद्य नस्य 'उत्तरपुरच्छि मे दिसीभागे' उत्तरपौरस्त्ये-ईशानकोणे दिग्भागे 'सालऋक्खस्स' शालवृक्षस्य 'अदरसामते' नाति दूरनिकटे 'उक्कुडुयस्स' उत्कुटु कस्य-उत्कुटुकासनस्य कुक्कुटासनेन इत्यर्थः 'गोदोहियाए' गोदोहिकया-गोदोहिकासनेन 'आयावणाए' आतापनया एवं 'वीयत्ताए पोरिसीए द्वितीय पौरुषी याने पाश्चात्य पौरुषी के व्यक्त होने पर अर्थात् मध्याह्न काल के बाद 'जभियगामस्स' जम्भिक नामके ग्राम के याने 'नयरस्स बहिया नईए उज्जुवालियाए' नगर के बाहर ऋजुचालिका नाम की नदी के 'उत्तरे कूले' उत्तर तट पर 'सामागस्त श्यामाक नाम के 'गाहावइस्स' गृहपति के 'कट्ट करणमि उडूंजाणू' क्षेत्र (खेत ) में जानें (घुटना) द्वय को ऊपर उठा कर और 'अहोसिरस्स' मस्तक को नीचे करके खडे होकर याने शीर्षासन करके 'ज्झागकोहोवगयस्स' ध्यान में लीन अर्थात् ध्यान में निमग्न भगवान् श्रीमहावीर स्वामी को 'वेयावत्तस्स चेयस्त' व्यावृत्त अथवा वैयावृत नामके चैत्य अर्थात उद्यान के उत्तर पुरच्छिमे दिसीभागे' उत्तर पौरस्त्य भाग में याने ईशान कोण में 'सालऋक्खस्स अदूरसामंते' शालवृक्ष के निकट में 'उक्कुडुयस्स' कुक्कुटासन के द्वारा याने कुक्कुट (मुर्गा ) के समान आसन लगाकर बैठे हुए या-'गोदोहियाए' गोदोहिकासन के द्वारा अर्थात् गायको दुहने के समय जिप्त प्रकार बैठ कर लोग-गाय को दूहते है उसी प्रकार आसन पारसीए' श्री पौ३५ी अर्थात् पश्चिम पौ३५ी प्रारस 25 त्यारे मेवे । मध्याह । ५छ। 'जंभियगामस्स' मिनमन'नयरस्स बहिया' ना२नी १९.२ 'नईए उज्जुबालियाए' *पाल नामनी नाना 'उत्तरकूले' उत्तर १२३॥ २॥५२ 'सामागस्स गाहावइस्स कटुकरणंसि श्यामा नमन। पतिना मेत२मा 'उडूढं जाणू अहोसिरस्स झाणकोटोवगयस्स' બે ગોઠણને ઉંચાકરી અને મસ્તકને નીચે રાખીને એટલે કે શીર્ષાસન કરીને ધ્યાનમાં મગ્ન थयेा भावान् श्रीमडावी२ २१ाभी ने 'वेयावत्तस्प्त चेइयस्स' व्यावृत्त अर्थात् वैयावृत्त नामना Gधानन। 'उत्तरपुरच्छिमे दिसीभागे' उत्तर पौर२त्य मा स्र्थात् शान मुलामा 'साल. ऋक्खस्स अदूरसामंते' या वृक्षती नदी 'उक्कुडुयस्स गोदोहियाए' ४४ासनद्वा२। अर्थात् મરઘડાની જેમ આસન લગાવીને બેઠેલા અથવા ગેહિકાસન દ્વારા અર્થાત્ ગાયને દેતી श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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