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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. ९ अ. १५ भावनाध्ययनम् १०८७ पमेन वा आलयेन-स्त्रीपुरुषनपुंसकरहितवस तिवासेन 'अणुत्तरेणं विहारेणं' अनुत्तरेणप्रघानेन अनुपमेन वा विहारेण 'एवं संजमेणं एवम्-उक्तरीत्या अनुपमेन संयमेन-यमनियमपालनेन 'पग्गहेणं संवरेणं' प्रग्रहेण-अनुपमप्रयत्नेन संवरेण-कर्मास्रवनिरोधरूपेण संवरेण 'तवेणं' तपसा-तपश्चर्यया 'बमचेरवासेणं' ब्रह्मचर्यवासेन-अनुपमब्रह्मचर्यधारणपूर्वकनिवासेन 'खंडीए मुत्तीए' क्षान्त्या-अनुपमक्षमया मुक्त्या-निर्लो मतया 'समिईए गुत्तीए' समित्या-पञ्चसमितिभिः गुप्त्या-तिसृभिः 'तुट्टीए ठाणेणं कमेणं' तुष्टया- अनुपमतोषेण, स्थानेन-एकत्रेय स्थि वा कायोत्सर्गरूपध्यानेन क्रमेण-अनुपम क्रियानुष्ठानेन 'सुचरियफल. निव्वाणमुत्तिमग्गेणं' सुनरितफलनिर्वाणमुक्तिमार्गेण-निर्वाणफलजनकसदाचरणजन्य मुक्तिया अनुपम आलय में घाने स्त्री पुरुष नपुंसक रहित वसती में निवास करते हुए एवं 'अणुत्तरेणं विहारेणं' अनुत्तर प्रधान या अनुपम विहार करते हुए एवं उक्त रीति से अनुपम यम नियम पालनरूप 'एवं संजमेणं' संयम पूर्वक रहते हुए एवं अनुपम 'पग्गहेणं' प्रग्रह याने प्रयत्न से अर्थात् यतना पूर्वक और 'संवरेणं' कर्मा. स्रव का निरोध रूप संवर से और 'तवेणं' तपश्चर्या से और अनुपम 'बंभचेर वासेणं' ब्रह्मचर्य से याने अनुपम ब्रह्मचर्य का धारण पूर्वक निवास से और अनु. पम 'खंतीए' क्षांति याने क्षमा से तथा 'मुत्तीए' मुक्ति याने निर्लोभता से एवं 'समिईए' पांच समितियों से एवं तीन 'गुत्तीए' गुप्तियों से एवं अनुपम 'तुट्टीए' तुष्टि से याने संतोष से तथा अनुपम 'ठाणेणं' स्थान से याने एक ही जगह स्थित होकर कायोत्सर्ग रूप ध्यान से तथा 'कमेणं' क्रम से अर्थातू अनु. पम क्रियानुष्ठान से और 'सुचरियफलनिव्वाण्णमुत्तिमग्गेणं' सुचरित फल निर्वाण मुक्ति मार्ग से याने मोक्षफल जनक सदाचरण जन्य मुक्ति मार्ग भूत चत्तदेहे' व्युत्सृष्ट १७पास अर्थात शरी२ स२४॥२ २डित छन 'अणुत्तरेण आलएण' मनु. સર–પ્રધાન મુખ્ય અથવા અનુપમ આલયમાં અર્થાત્ સ્ત્રી પુરૂષ નપુંસક રહિત વસતીમાં निवास ४२di ४२di तथा 'अणुत्तरेणं विहारेणं' अनुत्तर--प्रधान मा अनुपम विहार ४२di ४२di तथा 'एवं संजमेण' x १२थी अनुपम यमनियम पालन ३५ सयम २हीन 'पग्गहेणं' प्रड मेटले प्रयत्नथी पर्थात् यतन पूर्व तया 'संवरेणं' सिपना निराध३५ मा२ १२ना सपरथी तथा 'तवेणं' तपश्चर्याथा तथा 'बंभचेरवासेणे' मनुपम ब्रह्मययथा अर्थात् सनुपम प्रायना धा२९५ पूना निवासथी तथा 'खंतीए' मनुपमalr1 मर्थात् क्षमाथी तथा 'मुत्तीए' भुति अर्थात् निalealथी तथा 'समीईए' पाय समितियो भने १५ गुलियोथी तथा 'तुद्वीए' तुष्टि मर्थात् सतोषथी तथा 'ठाणेणं' भनुपम स्थानथी अर्थात् मे १ २थणे स्थित इन अयोस ३५ ध्यानथी तथा 'कमेणं' भया अर्थात् मनुपम यानुष्ठानथी मने 'सुचरियफलनिव्वाणमुत्तिमग्गेणं' सुयरित ५६ निर्षिय મુકિત માર્ગથી અર્થાત મેક્ષ ફલ જનક સદાચરણ જન્ય મુકિતમાર્ગરૂપ સમ્યફ જ્ઞાન श्री मायारागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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