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________________ १०८६ आचारांगसूत्रे करिष्ये अधिसहिष्ये-अधिसहनं करिष्ये खेदरहितः सन् सहिष्ये इत्यर्थः इत्येवम् प्रतिज्ञाविशेषरूपम् अभिग्रहं भगवान् गृहीतवान् इति भावः 'तओणं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु - अभिग्रहग्रहणानन्तरम् श्रमणो भगवान महावीर : 'इमं एयारूवं अभिग्ग अभिगिहित्ता' इमम् उपर्युक्तम् एतावद्रूपम् - एतादृशम् उपरिनिर्दिष्टस्वरूपम् अभिग्रहं प्रतिज्ञाविशेषम् अभिगृह्य-स्वीकृत्य 'वोसिद्वचत्तदेहे' व्युत्सृष्टत्यक्तदेह :- शरीर संस्कारममत्वर हितः सन् 'दिवसे मुहुत्त सेसे' मुहूर्तशेषे महूर्तमात्रावशिष्टे दिवसे ' कुम्मारगामं समणुपत्ते' कुमारग्रामम् - कुमारनामकं ग्रामम् समनुप्राप्तः समागतः 'तओ णं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु - कुमार नामक ग्रामप्राप्त्यनन्तरम् श्रमणो भगवान् महावीर : 'वो सिद्वरुतदेहे' व्युत्सृष्ट. त्यक्तदेह :- शरीरसंस्कारम मत्परहितः सन् 'अणुत्तरेणं आळणं' अनुत्तरेण - प्रधानेन अनुविघ्न बाधाओं को शान्ति पूर्वक सहन करने की प्रतिज्ञा की, याने अभिग्रह किया । अब उपर्युक्त प्रतिज्ञा का पालन करने के लिये भगवान् श्रीमहावीर स्वामी के कर्तव्य जात का निरूपण करते हैं-'तओणं समणे भगवं महावीरे' उसके बाद अर्थात् बारह वर्ष तक व्युत्सृष्ट शरीर और देह ममत्व रहित होकर सभी प्रकार की विघ्न बाधाओं को सहन करने की प्रतिज्ञा ग्रहण करने के बाद श्रमण भगवान् श्रीमहावीर स्वामी 'इवं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिन्हित्ता' इस पूर्वोक्त प्रकार के अभिग्रह रूप प्रतिज्ञा ग्रहण कर 'वोसिहचरा देहे' व्युसृष्ट व्यक्त देह होकर याने शरीर के संस्कार और ममत्व से रहित होकर 'दिवसे मुहुत्त से से' मुहूर्त मात्र दिवस के अवशिष्ट रहने पर घाने दो घटिका मात्र दिन के अवशेष रहने पर 'कुमारगामं समणुपत्ते' कुमार नाम के ग्राम में पधारे 'तओणं' उसके बाद याने कुमार नाम के ग्राम में पधारने के बाद 'समणे भगवं महावीरे' श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी 'वोसिट्ठचतदेहे' व्युत्सृष्ट व्यक्त देह होकर अर्थात् शरीर के संस्कार का ममत्व रहित होकर 'अणुत्तरेणं आलएणं' अनुत्तर प्रधान અર્થાત્ અભિગ્રહ ધારણ કર્યાં. હવે ઉપરક્ત ગ્રહણુ કરેલ પ્રતિજ્ઞાનું પાલન કરવા ભગવાન્ શ્રીમહાવીર સ્વામીના उर्तव्य निइया ४रवामां आवे छे- 'तओणं समणे भगवं महावीरे' ते पछी अर्थात् भार वर्ष પન્ત ક્રેડના મમત્વ ભાવથી રહિત થઈને બધા પ્રકારના વિઘ્નને સહન કરવાની પ્રતિજ્ઞા श्ररीने श्रमण भगवान् श्रीमहावीर 'इमं एयारूवं' अभिग्गहं अभिगिन्हित्ता' मे प्रभाना पूर्वोक्त अभिय३५ प्रतिज्ञाने धारण हरीने 'वोसिट्टचत्त देहे' व्युत्सृष्ट त्यात हेडवाजा थाने अर्थात् शरीरना संसार अने ममत्वथी रहित थाने 'दिवसे मुहुत्त सेसे' મુહૂર્ત માત્ર દિવસ બાકી રહે ત્યારે અર્થાત્ એ ઘડિ માત્ર દિવસ બાકી રહ્યા ત્યારે 'कुमारगामं समगुपत्ते' कुमार गाभ नामना गाभभां पधार्या. 'तओ णं समणे भगवं महावीरे' તે પછી અર્થાત્ કુમાર ગામમાં પધાર્યાં પછી શ્રમણ ભગવાન્ શ્રીમહાવીર સ્વામી ‘વોલિă શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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