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________________ ममैप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० ९ अ. १५ भावनाध्ययनम् _ १०७५ प्रभानाम्न्याम् शिबिकायाम्-दोलाविशेषरूपायाम्, सहस्रवाहिन्याम-सहस्रसंख्यकजनोहमानायाम्-सहस्रनननीयमानाया मित्यर्थः सहस्रजनैः वहनयोग्यायामिति भावः 'सदेवमणुयासुराए परिसाए' सदेव मनुष्यासुरया-देव मनुष्यासुरकुमारसहितया परिषदा 'समणिज्जमाणे' समन्वीयमान:-अनुत्रियमाणः अनुगम्यमान इत्यर्थः भगवान् महावीरः 'उत्तरखत्तिय कुंडपुरसंनिवेसस्त मज्झं ज्झेणं' उत्तरक्षत्रियकुण्डपुरसनिवेशस्य-उत्तरदिग्वति क्षत्रियकुल निवासस्थानभूत कुण्डपुरोपनगरस्य 'मज्झमज्झेणं' मध्यमध्येन-मध्यभागेनेत्यर्थः 'निगच्छइ' निगच्छति निष्कामति 'निग्गच्छित्ता' निर्गत्य-कुण्डपुरमध्यभागेन निष्क्रम्य 'जेणेव नायसंडे दृष्य वस्त्र को लेकर 'चंदप्पभाए सिविणए' चंद्रप्रभा नाम की दोला विशेषरूप शिबिका पर जो कि 'सहस्सवाहिणीए' एक हजार संख्यक मनुष्यों द्वारा वहन की जा रही थी अर्थात जिस शिविका-पालकी-दोला को एक हजार मनुष्यादि गण वहन करते थे उस शिविका पर चढकर 'सदेवमणुयासुराए परिसाए' देव मनुष्य और असुरकुमारेन्द्र सहित परिषदो से 'समणिज्ज माणे' गम्यमान याने देव गण तथा मनुष्य गण एवं असुरकुमारों की परिषदा जिस भगवान् श्री महावीर स्वामी के पीछे पीछे चल रहे हैं ऐसे भगवान श्री महावीर स्वामी 'उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसस्स' उत्तरक्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश याने उत्तरदिगुवर्ती क्षत्रिय कुल के निवासस्थान भूत कुण्डपुर नाम के उपनगर के 'मज्झं मज्झेणं णिगच्छई' मध्य से अर्थात् मध्य भाग से निकल रहा है याने भगवान् श्री महावीर स्वामी एकही देवदूष्य वस्त्र को लेकर चन्द्रप्रभा नाम की शिक्षिका पर चढे हुए बहुत से देव मनुष्य असुरकुमार वगैरह से अनुगम्यमान होकर उत्तर दिशा में विद्यमान क्षत्रिय राजवंशीय राजाओं के निवास स्थान भूत कुण्डपुर नाम के उपनगर के मध्य भाग से दीक्षा रूप प्रव्रज्या ग्रहण करने के नामनी शिमिरे 'सहस्सवाहिणीए' 28 m२ मनुष्यो | as पाती ती मात्रै पासमीन मे १२ भासे देता ता से पासमी ५२ मेसीन 'सदेव. मणुयासुराए' ४१, मनुष्य मने मसु२४भारेन्द्र सहित 'परिसाए' परिपहा 'समणिज्जमाणे' २॥ ५॥७॥ पाता तi वी अर्थात् ४१मए तथा मनुष्य एy अने અસુરકુમારની પરિષદ્ જે ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીની પાછળ પાછળ ચાલી રહ્યા छ । मावान् श्री महावीर स्वामी 'उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसस्स' उत्तरक्षत्रिय ७५२ સન્નિવેશ અર્થાત્ ઉત્તર દિશાના ક્ષત્રિય કુળના નિવાસસ્થાનરૂપ કુડપુર નામના ઉપનગરની 'मज्झं मझेणं णिगच्छइ' मध्य मामाथी २४ २हा ता. मात भगवान् पीत જીનેન્દ્ર વદ્ધમાન મહાવીર સ્વામી એકજ દેવદૂષ્ય વસ્ત્રને લઈને ચંદ્રપ્રભા નામની શિબિકાપર બેસીને ઘણુદેવ મનુષ્ય અને અસુરકુમાર વિગેરેથી અનુરાગ્યમાન થઈને ઉત્તર દિશામાં આવેલ ક્ષત્રિય રાજાઓના નિવાસસ્થાનરૂપ કુડપુર નામના ઉપરનગરના મવભાગમાંથી श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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