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________________ D २०७४ आचारांगसूत्रे खलु-दशम्यां तिथौ 'सुव्वएणं' दिवसेणं' सुव्रतेन-सुव्रतनामकेन दिवसेन 'विनएणं मुहुत्तेणं' विजयेन-विजयनामकेन मुहूर्तेन 'हत्थुत्तरानकखत्तेणं हस्तोत्तरानक्षत्रेण-उत्तराफाल्गुनी नामनक्षत्रेण 'जोगोवगएणं योगोपगतेन-चन्द्रमसा योगं प्राप्तेन, उत्तराफाल्गुनीनक्षत्रेण योगं प्राप्ते चन्द्रमसि इत्यर्थः 'पाईणगामिणीए छायाए' प्राचीनगामिन्याम्-पूर्वदिशिगतायाम् छायायाम् मध्याहानन्तरकाले इत्यर्थः 'बिइयाए पोरिसोए' द्वितीयस्यां पौरुष्याम्-द्वितीय प्रहरे व्यतीते सतीत्यर्थः 'छटेणं भत्तेणं' षष्ठेन भक्तेन-उपवासद्वययुक्तेन 'अपाणएणं' अपानकेन-पानरहितेन षष्ठभक्तेन उपलक्षिन इत्यर्थः 'एगसाडगमायाए' एकशाटकम्-एक देवदृष्यवस्त्रम्, आदाय गृहीत्वा 'चंदप्पभार सिबियाए सहस्सवाहिणीए' चन्द्रप्रभायाम् चन्द्रमार्गशीर्ष-अग्रहण मास के कृष्ण पक्ष के 'दसमी पक्खेणं' दशमी पक्ष अर्थात् दशमी तिथि में और 'सुव्वएणं दिवसेणं' सुव्रत नाम के दिन में और 'विजएणं मुहत्तण' विजय नाम के मुहूर्त में तथा 'हत्थुत्तरनक्खत्तेणं' हस्तोत्तरा नक्षत्र में अर्थात् हस्त नक्षत्र के बाद तुरत आनेवाले उत्तराफाल्गुनी नाम के नक्षत्र में तथा 'जोगोवगएणं' योग प्राप्त होने पर एतावता ऊत्तराफाल्गुनी नाम के नक्षत्र के साथ चंद्रमा का योग याने संबंध प्राप्त होने पर 'पाईण गामिणीए छायाए' प्राचीन गामिनी अर्थात् पूर्व दिशा के तरफ छाया के चले जाने पर याने मध्याह्न काल के बाद 'बिइयाए पोरसीए द्वितीय पौरषी अर्थात् दूसरा प्रहर बीत जाने पर 'छठेणं भत्तेणं' षष्ठ भक्त याने उपवासद्वय से युक्त और 'अपाणएणं' अपानक याने पान रहित अर्थात् जिस व्रत में जल भी नहीं पीआ जाता है इस प्रकार के पान रहित और उपवास द्वयात्मक षष्ठभक्त से उपलक्षित होकर याने जल के पान से भो रहित उपवासद्वयात्मक षष्ठव्रत करनेवाले भगवन् श्री महावीर स्वामी 'एगसाडगमायाए' एक शाटक को याने एक देवबहुलस्स दसमी पक्खेणं' 2 भागशीष भासना ०५५ पक्षनी भने पिसे 'सुब्बएणं दिवसेणं सुनतनामना हिसे तथा 'विजएणं मुहुत्तेणं' qिvi नामना भुतभा तथा 'हत्थुत्तरा नक्खत्तेणं' स्तात्त। नक्षत्रभा स्तनक्षत्रनी पछी तश्त भावना। उत्तराशगुनी नक्षत्र नामना नक्षत्रमा 'जोगोवगएणं' यो प्रात थdi 22से , उत्त२। शुनी नामना नक्षत्रनी सा2 यद्रभान यो। अर्थात् स त यो क्यारे 'पाईण गामिणीए छायाए' ५ ६॥ त२५ छाय॥ त्यारे अर्थात् मध्याह्न समय पछी 'बीइया ए पारसीए' मा पौ३५) अर्थात् मान प्रह२ वीति । ५४ी 'छ टेणं भत्तेणं' १०४ मत अर्थात् मे 6५१ युरत 'अपाणएणं' पानरहित अर्थात् प्रतम १६ ५५ પીવામાં આવે નહીં એટલે કે નિર્જલ અર્થાત્ ઉપવાસ દ્રય રૂ૫ ષષ્ઠ ભક્ત કરીને એટલે કે નિર્જલ બે ઉપવાસરૂપ ષષ્ઠ વ્રત કરવાવાળા ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામી “gसाडगमायाए' से ८४ अर्थात् मे४ हेक्ष्य पस 'चंदप्पभाए सिबियाए' यद्रप्रमा श्रीमाया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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