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________________ १०५८ _____ आचारांगसूत्रे स्वकैः स्वकैः चिह्न:-स्वस्वपरिचायकचिह्नविशेषैः युक्ताः सन्तः 'सचिडीए सव ईए सब्ध. बलसमुदएणं' सर्वद्धर्या-सर्वप्रकारक ऋद्धिसम्पन्नाः 'सर्वात्या-सर्वप्रकारकांतियुक्ताः सर्वबलसमुदायेन-सर्वप्रकारक स्वस्वसैन्यबलसमेताः 'सयाई सयाई जाणविमाणाई' स्वकानि स्वकानि-आत्मीयानि यानविमानानि 'दुरूहंति' आरोहन्ति, 'सयाई सयाई जाणविमाणाई दुहित्ता' स्वकानि स्त्रकानि यानविमानानि आरुह्य निजनिजयानविमानेषु उपविश्येत्यर्थः 'अहाबायराई पुग्गलाई परिपाडंति' यथाबादरान्-यथास्थूलान् पुद्गलाद्-स्थूल निस्सार पुदगलानित्यर्थः परिशातयन्ति-पातयन्ति-दुरी कुर्वन्ति 'परिसा उत्ता' परिशात्य स्थूलपुद्गलान् शातयित्वा निस्सार्य निस्सार स्थूलपुद्गलान् पातयित्वेत्यर्थः 'अहासुहुमाई पुग्गलाई परियाइंति' यथासूक्ष्मान् पुद्गलान् सारभूत सूक्ष्मपुदगलानित्यर्थः पर्याददते-परिगृह्णन्ति 'परियाइत्ता उई उप्पयंति' पर्यादाय परिगृह्य ऊर्ध्वन्-ऊर्ध्वलोकम् -उच्चरित्यर्थः उत्पतन्तिअपने अपने नेपथ्यों से याने वेषों से एवं - 'सएहिं सएहि त्रिंधेहिं'-अपने अपने स्वरूपों के परिचायक (पहचान कराने वाले) चिह्न विशेषों से युक्त होकर-सब्धि डिए' सभी प्रकार की ऋद्वियों से संपन्न होकर और सर्व प्रकार की युतिसे युक्त होकर 'सव्व बलसमुदएणं' सभी प्रकार के अपने अपने मैन्यबल के साथ 'सयाई सयाइं जाणविमाणाई दुरूहंति'-अपने अपने आत्मीय यानविमान पर आरूढहुवे 'सयाइं सयाइं जाणविमाणाई दुरुहित्ता' अपने अपने आत्मीय यान विमानों पर चढ कर अर्थात् अपने अपने यान विमानों में बैठकर 'जहा बायराई' यथा बादर अर्थात् स्थूल बडे बडे 'पुग्गलाई परिसाउंति' निस्सार पुद्गलों को परिशातन करते हैं याने गिराते हैं या दूर करते हैं एतावता सार रहित बडेबडे पुद्गलों को नीचे गिराते हैं और 'परिसाडित्ता' परिशातनकर अर्थात् निस्सार स्थूल पुद्गलों को गिराकर याने सार हीन बडे बडे पुदगलों को निकालकर 'अहानुहुमाइं पुग्गलाई परियाईति' यथा सूक्ष्म अर्थात् सारभूत सूक्ष्म छोटे छोटे पुदगलों को परिग्रहण करते हैं और परियाइत्ता' उन सारभूत सूक्ष्म छोटे वाथी तथा 'सएहि सएहि चिंधेहि' पातपाताना २१३पाना पस्यियना शिवशायी युत न 'सविडूढीए' मा ५४२नी यथी युत वन तथा 'सबज्जुइए' मा २नी युतिथी युत यन तथा 'सबबलसमुदएणं' ५५॥ २॥ पतपेताना सैन्यमना साथे 'सयाइ सघाइ जाणविमाणाई दुरू हत्ता' पातपातान! यानविमानामा मेसीन 'अहा बायराइ पुगलाइ परिसाडंति' या मा४२ अर्थात् स्थूल मोटा मोटा निस्सार पशवोन नीय ३४ी छे. मने 'पडिसाडित्ता' ५.२शाटन अर्थात् निस्सा२ स्थूस, पुदवाने ३४ हीधा ५छी थेट सा२ना मोटामोटा पुलाने महा२ ४४ी 'अहा सुहमाई पुग्गलाई परियाईति' यथासूक्ष्म नाना नाना पुनसाने अहए छे. 'परियोइत्ता' मने ये सार भूत स६५ नाना नाना पुगतान अहए। रीने 'उडूढ उप्पयंति' 3 भात् ६५२नी श्री सागसूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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