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________________ १०३३ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ स्. ५ अ. १५ भावनाध्ययनम् क्खएणं 'ततः खलु-तदनन्ताम् आयुक्षयेण-देवभवक्षयं कृत्वा स्थितिक्षयेण-देवस्थितिक्षयं कृत्वा 'चुप चइत्ता' च्युतः-तस्माद् अच्युतनामद्वादशदेवलोकात् च्यवनं कृतवन्तौ, च्युत्याततः च्यवनं कृत्वा 'महाविदेहे वासे' महाविदेहे वर्षे-महाविदेहक्षेत्रे इत्यर्थः 'चरमेणं उस्सासेणं' चरमेण-अन्तिमेन उच्छवासेन-श्वासप्रश्वासेन-श्वासोच्छ्वासेन इत्यर्थः 'सिज्झिस्संति' सेत्स्यतः-सिद्धि प्राप्स्यतः, 'बुझिस्संति' भोत्स्येते-बोधं लप्स्यते 'मुच्चिस्संति' मोक्ष्येते कर्मबन्धमोक्षं लप्स्ये ते 'परिनिव्वाइस्संति' परिनिर्वास्पतः-निर्वाणं प्राप्स्पत, 'सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति' सर्वदुःखानाम् अन्तं करिष्यतः-सर्वप्रकारक दुःखनाशं विधास्वत इत्यर्थः ॥२०॥ विमान में अर्थात् अच्युत नामके बाहर देवलोकमें 'देवत्ताए उघवन्ने' देव रूप में उत्पन्न हुए 'तओणं' उसके बाद याने द्वादश वे देवलोक में उत्पन्न होने के बाद 'आउक्खएणं' आयु के क्षय से अर्थात् देवलोक में रहने की आयु का क्षय करके और 'भवक्ख एणं' भवक्षय याने देव भव का क्षय करके और 'ठिवखएणं' देव स्थिति का क्षय करके 'चुए' च्युत अर्थात् अच्युत नामके बारह वां देवलोक से च्यवन किया और 'चहत्ता' उस बारहवां देवलोक से च्यवन करने के बाद 'महाविदेहे वासे चरमेणं जस्सासेण' महाविदेह क्षेत्रमें चरम उच्छवास अर्थात अंतिम श्वास उच्छ्वास लेकर 'सिज्झिरसंति' सिद्ध होंगे याने सिद्धि को प्राप्त करेंगे और 'बुझिस्संति बोध को प्राप्त करेंगे याने तत्वज्ञानरूप विशिष्ट ज्ञान को प्राप्त करेंगे और 'मुच्चिरसंति' अर्थात कर्मबन्धनों से छुटकारा प्राप्त करेंगे और 'परिनिव्वाइरसंति' निवार्ण को प्राप्त करेंगे और 'सत्व दुक्खाणमंतं करिस्संति' एवं सर्व दुःखो का अंत करेंगे । अर्थात् सभी प्रकार के प्रारब्ध संचित वर्तमान कर्म जन्य दुःखों का नाश करेंगे एतावता श्रमण भगगन श्री महावीर स्वामी के त्रिशला नाम की माता और सिद्धार्थ नाम के पिता श्री पार्श्वनाथ तीर्थकर हेक्सामा हेवपणाथी उत्पन्न प्या. 'तआणं आउक्खएण भवक्खएणं ठिइक्खएणं' ते पछी અર્થાત્ બારમા દેવલેકમાં ઉત્પન્ન થયા પછી અયુના ક્ષયથી અર્થાત્ દેવલોકમાં રહેવાની આયુષ્ય સમાપ્ત કરીને અને ભાવક્ષય અર્થાત્ દેવભવને ક્ષય કરીને તથા દેવસ્થિતિને ક્ષય ४२१२ २युत आयात् ५२युत नामाना मा२मा माथी चुर' -यन यु भने 'चइत्ता' से मारमा नसाथी 2441 ४२ 'महाविदेहे वासे' मावि क्षेत्रमा 'चरमेणं उम्सासेण' २२ ६२७स अर्थात् मतिम श्वास २०१॥स ने 'सिज्झिस्संति' सिद्ध शे. मर्यात सिद्धि प्राप्त ४२२. तथा 'बुझिस्संति' मा प्रात ४२२. अर्थात् तज्ञान ३५ विशेष ५४२ना ज्ञान प्राप्त ४२शे. तथा 'मुच्चिस्संति' भुत थरी मेट ३-४मधनायी शूटि ४. तथा 'परिनिव्वाइस्संति' निfey प्राप्त ४२म 'सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति' સર્વ દુઃખને અંત કશે. અર્થાત્ બધા પ્રકારના પ્રારબ્ધ સંચિત વર્તમાન કર્મ જન્ય દુઃખોને નાશ કરશે. કહેવાને ભાવ એ છે કે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામીના प्रा० १३० श्रीमाया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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