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________________ आचारागसूत्रे तथा ‘पापमिति वा' कश्चित्कथयति-पापं त्वया समाचरितं यद् गृहस्थधर्मपरिपालनासमर्थः कातरोऽनपत्य एव त्वं संयमं गृहीतवानिति। एवमेव कश्चित्कथयति-साधुरिति वा असाधुरिति वा, तथैव तव सिद्धिरिति वा, असिद्धिरिति वा, तथा निरय मुनिके प्रति कोई ऐसा कहता है कि " कल्याणम् आचरितं त्वया" तुमने अपनी आत्माका कल्याण-भला-कर लिया।तथा 'पापमिति वा' कोई कहता है कि आपने यह अच्छा नहीं किया क्यों कि इससे तो यह मालूम होता है कि तुम गृहस्थ धर्मके पालन करने में कायर-असमर्थ थे और इससे कायर बन कर विना पुत्ररूप उत्तराधिकारीके हुए तुमने संयम धारण कर लिया है। इसी तरह कोई कहता है-'साधु इति वा, असाधु इति वा-आपने अच्छा किया, आपने अच्छा नहीं किया, तथा-'तव सिद्धिरिति वा'-असिद्धिरिति वा, तुम्हारी सिद्धि होगी-तुम्हारी सिद्धि नहीं होगी, एवं निरय इति वा-तुमने घरवालोंका कुछ भी ख्याल न कर और उन्हें रोता विलखता छोड़ कर जो यह साधुका वेष पहिर लिया है-इससे तुम्हारी गति अच्छी हो जावेगी, सो यह बात नहीं है, दूसरों को दुःखके उत्पादक होनेसे तुमने नरक गमनके योग्य पापका ही उपाजन किया है, अत: तुम मनुष्य नहीं-नारकी हो । यह आवेशके वचन हैं । कोई २ मनुष्य सांसारिक पदार्थों को छोड़कर आत्मकल्याण करने सम छ, “कल्याणम् आचरितं त्वया" तमे तमा॥ मात्मानु इत्या मसे सीधु. तथा-'पापमिति वा'- सम छ तमे 2013 નથી કર્યું, કેમ કે આથી તે એમ માલુમ પડે છે કે તમે ગૃહસ્થ ધર્મનું પાલન કરવામાં અસમર્થ હતા, અને એથી કાયર બની પુત્રરૂપી ઉત્તરાધિકારી વિના तमे संयम पा२९ ४२व छ. Mi 5 मेम ५५ ४९ छे , 'साधु इति वा' 'असाधु इति वा' माघे सा३ यु. मापे सा३ नथी यु. तथा-'तव सिद्धिरिति वा असिद्धिरिति वा' तमारी सिद्धि थरी तमारी सिद्धि थनार नथी. तथा-'निरय इति वा' तमे पाताना घराणायानी xis ५५ ज्यास કર્યા વગર અને તેને રેતા કકળતા છેડીને જે આ સાધુને વેશ પહેર્યો છે એથી તમારી ગતિ સારી થશે એ વાત બરાબર નથી, બીજાઓને દુઃખ થાય તેવું કરવાથી તમોએ નરક એગ્ય પાપનું જ ઉપાર્જન કરેલ છે. આથી તમે મનુષ્ય નથી, નારકી છે. આ આવેશનું વચન છે. કઈ કેઈમનુષ્ય, સાંસારીક પદાર્થોને છોડીને આત્મકલ્યાણ કરવાવાળાઓની પ્રશંસા-સ્તુતિ પણ કરે છે श्री आया। सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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