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________________ [६०] विषय २ कितनेक मनुष्य युवावस्थामें ही संबुद्ध हो मुनि हो जाते हैं । उनमें जो बुद्धबोधित होते हैं वे पण्डितों अर्थात् तीर्थकरगणधर आदिके समीप धर्मवचन सुन कर उन्हें हृदय में उतार कर समताभावका अवलम्बन करे ; क्यों कि तीर्थंकरगणधर आदिकोंने समतासे ही धर्मका प्ररूपण किया है । उन साधुओंको चाहिये कि वे शब्दादिक विषयोंकी अभिलापासे रहित हो कर, प्राणियोंकी हिंसा और परिग्रह नहीं करते हुए विचरते हैं । ऐसे मुनि कभी भी परिग्रहों से लिप्त नहीं होते हैं, और न ये प्राणियोंके ऊपर मनोवाक्कायदण्डका ही प्रयोग करते हैं। ऐसे मुनियों को तीर्थंकरोंने महान् और अग्रन्थ कहा है। ऐसे मुनि मोक्ष और संयमके स्वरूप के परिज्ञाता होते हैं, और वे देव, नारक, मनुष्य और तिर्यञ्च के जन्म-मरणादिक दुःखोंको जान कर कभी भी पापकर्म नहीं करते हैं । ५ तृतीय सूत्रका अवतरण, तृतीय सूत्र और छाया । ६ पूर्वोक्त मुनि आगममें कुशल होते हैं और वे काल, बल, मात्रा, क्षण, विनय और समयके ज्ञाता होते हैं । वे परिग्रहमें ममत्व नहीं रखते हैं, यथाकाल अनुष्ठान करनेवाले होते हैं और अप्रतिज्ञ होते हैं। ऐसे मुनि रागद्वेषको छिन्न करके मोक्षको प्राप्त करते हैं । શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩ पृष्ठाङ्क ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया । 1 ४ आहार से परिपुष्ट प्राणियों के ये शरीर, परीषहोंके आनेपर विनष्ट हो जाते हैं । देखो; कितनेक प्राणी क्षुधापरीषहसे कातर हो जाते हैं, और इनके विपरीत कोई २ रागद्वेषवर्जित मुनि क्षुधापरिषदके प्राप्त होने पर भी निष्प्रकम्प हो कर पड्जीवनिकायके ऊपर दया करनेमें ही संलग्न रहते हैं । ४३१-४३३ ४३३- ४३४ ४२७-४३० ४३१ ४३४
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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