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________________ [५९] विषय ६ श्मशानादिस्थित साधुके, गृहपतिद्वारा प्रदत्त अकल्पनीय अशनादिक न लेनेपर, यदि वे गृहपति उस साधुकी ताडना आदि करें तो साधु उस ताडनादिकको शान्तिपूर्वक सहन करे । अथवा वह साधु उस गृहपतिके सम्यग्दृष्टित्व और मिथ्यादृष्टित्वका अनुमान कर, यदि वह सम्यग्दृष्टि हो तो उसे साधुके आचारका परिज्ञान करावे । अथवा-यदि देखे कि यह गृहपति मिथ्यादृष्टि है तो कुछ भी नहीं कहे । चुप चाप उसके द्वारा किये गये उपसर्गों को शान्तचित्त हो कर सहे। ४१६-४२२ ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण, चतुर्थ सूत्र और छाया। ४२२-४२३ ८ वह साधु गृहपतिद्वारा प्रदत्त उस आहारादिको कभी भी स्वीकार न करे । इतना ही नहीं वह साधु शाक्यादि परतीर्थकों को कभी भी अशनादिक नहीं देवे, न उन्हें निमन्त्रित करे, न उनकी सेवा करे, और न उनका आदर ही करे। पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र । ४२३-४२४ भगवान्की आज्ञा है कि साधु अपने साधर्मिक साधुको अशनादिक प्रदान करे, उसको निमन्त्रित करे, उसकी सेवा करे और उसका आदरसत्कार करे। ४२४-४२५ ॥ इति द्वितीय उद्देश ॥ ४२३ ॥ अथ तृतीय उद्देश॥ १ तृतीय उद्देशका द्वितीय उद्देशके साथ सम्बन्धकथन । प्रथम सूत्रका अवतरण, प्रथम सूत्र और छाया । ४२६-४२७ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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