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________________ [५६] विषय पृष्ठाङ्क २१ ग्यारहवें सूत्रका अवतरण, ग्यारहवां मूत्र और छाया। २२ इस औदारिक आदि शरीरके विनाशको तीर्थकरोंने संग्रामका अग्र भाग कहा है । मुनिजन ज्ञानाचारादिरूप नौकाका अवलम्बन कर संसार महासागरके पारगामी होते हैं। परीषह और उपसर्गों से हन्यमान मुनि, रागद्वेषरहित अपने मरणकालसे अभिज्ञ हो कर बारह वर्षकी संलेखनासे शरीरका संलेखन करके भक्तपत्याख्यान आदिमेंसे किसी एक मरणसे अपने मरणकालकी प्रतीक्षा करें। इस प्रकारके मुनि सकल कर्मक्षय करके मोक्षगामी होते हैं। ३५५-३६० २३ अध्ययनविषयोपसंहार । ३६०-३६१ ।। इति षष्ठ अध्ययन ॥ ॥ अथ अष्टम अध्ययन ॥ (प्रथम उद्देश) १ सप्तम अध्ययनके विच्छेदका कारण । ३६३-३६५ २ अष्टम अध्ययनका उपोद्घात । ३६५-३६६ ३ अष्टम अध्ययनमें प्रतिपादित विषयोंका उद्देशक्रमसे संक्षेपतः कथन । ३६७-३७० ४ प्रथम सूत्रका अवतरण, प्रथम सूत्र और उसकी छाया। अवसन्न पार्श्वस्थ आदि स्वमतावलम्बियोंका और शाक्यादि परमतावलम्बियोंको, साधु कभी भी आहार आदि न देवे,न उन्हें निमन्त्रित करे, और न उनकी शुश्रूषा ही करे। ३७०-३७१ ६ द्वितीय सूत्रका अवतरण, द्वितीय सूत्र और छाया । ३७१-३७२ ३७० श्री. मायाग सूत्र : 3
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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