SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५५ ] विषय ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण, चतुर्थ सूत्र और छाया । ८ मुनि एकेन्द्रियादि सभी प्राणियोंके हितकी ओर दृष्टि रखते हुए धर्मोपदेश करे । ९ पञ्चम सूत्रका अवतरण, पञ्चम सूत्र और छाया । १० धर्मोपदेश करते हुए मुनि, न अपने आत्माकी विराधना करें, न दूसरे मनुष्योंकी विराधना करे और न अन्य प्राण, भूत, जीव और सन्त्वकी विराधना करे । ३४४-३४५ ११ छठे सूत्रका अवतरण, छठा सूत्र और छाया । ३४५ १२ जीवोंके अनाशातक मुनि सभी प्राणियोंके शरण होते हैं । ३४६-३४७ १३ सातवें सूत्रका अवतरण, सातवां सूत्र और छाया । ३४७-३४८ १४ कर्मविनाशके लिये उत्थित मुनि, श्रुतचारित्र धर्म में स्थिर हो कर, बलवीर्यको नहीं छिपाते हुए, सभी प्रकारकी परिस्थिति में निष्प्रकम्प, स्थिरवासरहित अर्थात् उग्रविहारी और संयमकी ओर लक्ष्य रखते हुए विहार करे । १७ नवम सूत्रका अवतरण, नवम सूत्र और छाया । १८ आसक्तियुक्त प्राणी, बाह्याभ्यन्तर परिग्रहोंसे निबद्ध होते हैं, उनमें निमग्न रहते हैं, कामभोगमें अभिनिविष्ट चित्तवाले होते हैं । मुनिको चाहिये कि वे आसक्तिरहित हो कर संयम पालन करें, संयमसे कभी भी भयभीत न होवें । १५ अष्टम सूत्रका अवतरण, अष्टम सूत्र और छाया । १६ सम्यग्दृष्टि जीव जिनोक्तधर्मको जानकर परिनिर्वृत हो जाता है । १९ दशम सूत्रका अवतरण, दशम सूत्र और छाया । २० वह आरम्भ कि जिससे हिंसक जन भयभीत नहीं होते हैं, उसको सम्यक् प्रकारसे जान कर और चार कषायका वमन करके मुनिजन संयममार्ग में विचरते हैं। एसे मुनिजन के सभी कर्म बन्धनतूट जाते हैं । શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩ पृष्ठाङ्क ३४२ ३४३ ३४३-३४४ ३४८ ३४९ ३४९ ३४९-३५० ३५०-३५१ ३५२ ३५२-३५४
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy