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________________ [३] विषय सतत प्रवृत्त रहता है, सावद्याचरणसे रहित होता है, बाह्यआभ्यन्तर अभिष्वङ्गके परित्यागी हो ताहै और जीवोंमें आसक्ति नहीं करता है। इस प्रकारका मुनि कोई भी सावधाचरण नहीं करता है। १०१-११५ १० पञ्चम सूत्रका अवतरण, पञ्चमसूत्र और छाया। ११५ वसुमान मुनि पदार्थज्ञानयुक्त आत्मासे संपन्न होकर, अकरणीय पापकर्मों का अन्वेषी नहीं होता है। जो सम्यक्त्व है वही मौन है, जो मौन है वही सम्यक्त्व है-इस वस्तु को समझो। इस सम्यक्त्व का आचरण वह नहीं कर सकता है जो शिथिल होता है, पुत्रादिकों के प्रेममें फसा रहता है, शब्दादि विषयों में जिसकी अभिरुचि होती है, जो प्रमादी है और जो गृहस्थित है, जो इस सम्यक्त्व का आचरण करता है ऐसा मुनि, सर्व सावधव्यापारपरित्यागरूप मुनिभाव को सम्यक प्रकार से ग्रहण कर कार्मण और औदारिक आदि शरीरों को दूर करे । एसा मुनि वीर होता है, अन्तमांत आहारको सेवन करता है । ऐसा मुनि ही संसारसागर को तिरनेवाला, मुक्त और विरत कहा गया है। उद्देशसमाप्ति । ११६-१२१ ॥ इति तृतीय उद्देश ॥ ॥ अथ चतुर्थ उद्देशः॥ १ तृतीय उद्देश के साथ चतुर्थ उद्देश का संबन्धकथन । १२२ २ प्रथम सूत्र और छाया। १२२ ३ शास्त्रानभिज्ञ और अल्पवयस्क मुनि को एकाकी ग्रामानुग्राम विहार नहीं करना चाहिये। १२२-१२६ ४ द्वितीय सूत्र और छाया। १२७ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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