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विषय
८ तृतीय सूत्र का अवतरण ।
९ तृतीय सूत्र और छाया ।
१० संशय के परिज्ञान से जीव संसार के प्रति संशयशील हो उसका परित्याग करता है, और संशय के अपरिज्ञान से जीव न तो संसार के प्रति संशयशील होता है और न उसका परित्यागही करता है |
११ चतुर्थ सूत्र का अवतरण, चतुर्थ सूत्र, छाया । १२ संसारके कटुविपाकको जाननेवाले चतुर पुरुष, किसी भी प्रकारके सागारिकका सेवन नहीं करते। जो मूढ पुरुष महोदय से सागारिक सेवन करते हैं, उनकी प्रथम बालता सागारिक सेवन करना है और दूसरी बालता पूछे जाने पर उसको छिपानेके लिये असत्य भाषण करना है । इस लिये प्राप्त शब्दादि विषयोंको परित्याग कर और अमाप्त विषयोंको मनसे भी चिन्तन नहीं करते हुए भव्य जीव, उन विषयों को इहलोक और परलोकमें कटुक फल देनेवाले जान कर दूसरे लोगोंको भी 'मैथुन अनासेवनीय है ' - ऐसा उपदेश दें।
१३ पञ्चम सूत्र और छाया ।
१४ कितनेक मनुष्य रूपमें और कितनेक स्पर्शमें गृद्ध हो कर नरकादि गतियों के भागी होते हैं । सावध व्यापार करनेवाले मनुष्य, इन सावद्यव्यापारतत्पर मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, अथवा षड्जीवनिकायों में उत्पन्न होते हैं । साधु होकर भी कितनेक विषयस्पृही हो जाते हैं, फिर पापकर्मों में रत रहने लगते हैं, वे अशरणको ही शरण मानते हैं, कोई २ उनमें एकलविहारी भी हो जाते हैं । ये अत्यन्त क्रोध आदि दुर्गुणोंसे युक्त होते हैं, सुसाधु बननेका ढोंग करते हैं, 'मेरे दोषोंको कोई
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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