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________________ आचाराङ्गसूत्रके पञ्चम अध्ययनकी विषयानुक्रमणिका प्रथम उद्देश विषय १ चतुर्थ अध्ययन के साथ पञ्चम अध्ययनका सम्बन्धप्रतिपादन पञ्चम अध्ययनके छ उद्देशों में वर्णित विषयोंका सूचन २ ३ प्रथम सूत्र का अवतरण प्रथम सूत्र और उसकी छाया ५ इस लोकमें कितनेक मनुष्य, प्रयोजन अथवा विना प्रयोजन केस-स्थावर जीवों की हिंसा करते हैं, वे दुर्गतिभागी होते हैं । वे अति तीव्र शब्दादिविषयों की अभिलाषा के कारण इन त्रस - स्थावर जीवों की हिंसा करते हैं और इसके फल स्वरूप उन्हें जन्म-मरण के दुःखों से छुटकारा नहीं मिलता, अत एव विषयों के सुखों से उन्हें तृप्ति भी नहीं होती । और जो अपूर्व करण से ग्रन्थि को भिन्न कर चुके हैं वे न hitra बीच में हैं और न बाहर ही; अथवा जिन्होंने चारित्र का लाभ कर लिया है वे न तो कर्म या संसार के मध्य में ह और न बाहर; अथवा - अर्थरूप से द्वादशाङ्ग उपदेशक तीर्थकर भगवान् न संसार के मध्य में है न उसके बाहर ही । ६ द्वितीय सूत्र का अवतरण, और छाया ७ सम्यक्त्व के प्रभाव से संसार की असारता समझनेवाले भव्य जीव अपने जीवन को वायुप्रकम्पित कुशाग्रस्थित जलबिन्दु के समान समझते हैं, उसी प्रकार वे बालजीवों के जीवनको द्वितीय सूत्र अश्चिल समझते हैं । वालजीव क्रूर कर्मों को करते रहते है, वे उनके दुष्परिणामको नहीं समझते हैं और जन्ममरण के चक्कर से कभी भी छुटकारा नहीं पाते । શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩ पृष्ठाङ्क १ २-३ ३ mo ४-१६ १७ १७-२६
SR No.006303
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages719
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size37 MB
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