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________________ सम्यक्त्व - अध्य० ४. उ. ४ तेषां सत्यावस्थायिनां ज्ञानमाह - ' साहिस्सामो ' इत्यादि । मूलम् - साहिस्सामो नाणं वीराणं समियाणं सहियाणं सयाजयाणं संघडंसीणं आओवरयाणं अहातहा लोय मुवेहमाणाणं, किमत्थि उवाही ? पासगस्स न विज्जइ, नत्थि-त्ति बेमि ॥ सू०११ ॥ छाया - साधयिष्यामो ज्ञानं वीराणां समितानां सहितानां सहायतानां संघटदर्शिनाम् आत्मोपरतानां यथातथा लोकमुपेक्षमाणानां किमस्ति उपाधिः पश्यकस्य ? न विद्यते नास्ति, इति ब्रवीमि ॥ म्र० १९ ॥ टीका - तेषां वीराणां समितानां सहितानां सदायतानां संघटदर्शिनाम् आत्मोपरतानां यथातथा लोकमुपेक्षमाणानां ज्ञानम् = अभिप्राय, साधयिष्यामः = कथके पालन करनेवाले को 'समित, ' आत्मकल्याण में उद्यमशाली अथवा ज्ञानादिक गुणों से युक्त को ' सहित ', सर्वदा संयम की आराधना में सावधान को 'सदायत, ' हेयोपादेय के विवेक से युक्त अथवा अव्याबाध आनन्दस्वरूप मोक्ष की अभिलाषावाले को ' संघटदर्शी ' और कषायों से उपरत - निवृत्त जीवों को 'आत्मोपरत ' कहते हैं || सू० १० ॥ मोक्षमार्ग में रहनेवाले उन वीर - आत्माओं के ज्ञान के विषय में सूत्रकार कहते हैं: - ' सहिस्सामो नाणं' इत्यादि । हम वीर, समित, सहित, सदायत, संघटदर्शी, आत्मोपरत, यथावस्थित लोक की उपेक्षा करनेवाले उन मोक्षमार्ग के पथिकों के ज्ञान के विषय में आगे कथन करेंगे। अभी तो इतना ही कहते हैं कि उन वीरादिविशेषणविशिष्ट आत्माओं के कर्मजनित कोई भी उपाधिनहीं है। ६८७ उरवावाजाने 'समित ', आत्मयाशुभां उद्यमशाणी अथवा ज्ञानादि गुणोथी युक्तने' सहित ', सर्व'द्वा संयमनी आराधनामां सावधानने 'सदायत', हेयेोपायना विवेञ्ज्थी युक्त अथवा अव्यामाधमानःस्व३५ मोक्षनी अलिसाषावाणाने ' संघटदर्शी ' अने उपायोथी उपरत - निवृत्त वोने ' आत्मोपरत ' हे छे. ॥सू० १०॥ માક્ષમાગ માં રહેવાવાળા તે વીર-આત્માઓના જ્ઞાનના વિષયમાં સૂત્રકાર उडे छे: - " साहिस्सामो नाणं " इत्यादि. , अभे वीर, समित, सहित सहायत, संघटहर्शी, आत्मोयरत मने यथाવસ્થિત લેાકની ઉપેક્ષા કરવાવાળાં તે મેાક્ષના પથિકાના જ્ઞાનના વિષયમાં આગળ કહીશું. હમણાં તે આટલું કહીએ છીએ કે તે વીરાદ્વિવિશેષણવિશિષ્ટ આત્માએને ક જનિત ( કથી થનારી ) કાઈ પણ ઉપાધિ નથી, શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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