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________________ विषय ५८९ पृष्ठाङ्क १० सम्यक्त्वमोहनीयका स्वरूप । ५७३-५७५ ११ मिश्रमोहनीय । ५७६ १२ मिथ्यात्वमोहनीय। ५७६-५८४ १३ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । ५८५ १४ सभी तीर्थङ्करोंद्वारा प्रतिपादित सम्यक्त्वका निरूपण । ५८५-५८८ १५ द्वितीय मूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र । १६ यह सर्वप्राणातिपातविरमणादिरूप धर्म-शुद्ध, नित्य और शाश्वत है । इस धर्मको भगवान्ने षड्जीवनिकायरूप लोकको दुःख-दावानलके अन्दर जलते हुए देखकर प्ररूपित किया है। भगवान्ने इस धर्मका प्ररूपण उत्थित अनुत्थित आदि सबोंके लिये किया है। ५८९-५९३ १७ तृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय सूत्र । १८ भगवान्का वचन सत्य ही है, भगवान्ने वस्तुका स्वरूप जिस प्रकार प्रतिपादन किया है वह वस्तु वैसी ही है-इस प्रकारके श्रद्धानलक्षण सम्यक्त्वका प्रतिपादन केवल आर्हतागममें ही कहा गया है; अन्यत्र नहीं ! ५९३-५९४ १९ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र । ५९५ २० उस सम्यक्त्वको प्राप्त कर, धर्मको उपदेश-आदि उपायद्वारा जान कर सम्यक्त्वको प्रशम-संवेगादिद्वारा प्रकाशित करे, सम्यक्त्वका परित्याग न करे। ५९५-५९६ २१ पञ्चम सूत्रका अवतरण और पश्चम मूत्र । ५९७ २२ ऐहिक और पारलौकिक इष्ट-अनिष्ट शब्दादि विषयों में वैराग्य रखे। २३ छठा सूत्र। ५९८ २४ लोकैषणा न करे। ५९८-५९९ २५ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवां सूत्र । ५९९ २६ जिसको लोकैषणा नहीं है उसको सावध-व्यापारमें प्रवृत्ति कहांसे ५९७ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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