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________________ ५३ विषय १५ आठवाँ सूत्र । १६ इन अन्यबधादिकों का सेवन करके इन्हें निस्सार समझ कर संयमाराधन में इनको निस्सार समझ कर ज्ञानी इनका १७ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र । १८ देव भी जन्ममरणशील होते हैं; इसलिये उनके सुख को भी नश्वर समझ कर श्रुतचारित्रधर्मका सेवन करो । भरतादि - जैसे कोई २ तत्पर हुए हैं । इसलिये सेवन नहीं करे । १९ दशम सूत्र । २० श्रुतचारित्र धर्म के आराधनमें तत्पर मुनि किसी की हिंसा न करे, न दूसरों से हिंसा करावे और न हिंसा करनेवाले की अनुमोदना ही करे । २१ ग्यारहवाँ सूत्र का अवतरण और ग्यारहवा सूत्र । २२ स्त्रियों में अनासक्त, सम्यग्ज्ञानदर्शन चारित्रके आराधन में तत्पर तथा पाप के कारणभूत कर्मों से निवृत्त मुनि वैषयिक सुख की जुगुप्सा करे । શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨ २३ बारहवाँ सूत्र | २४ क्रोधादि का नाश करे, लोभ का फल नरक समझे, प्राणियों की हिंसा से निवृत्त रहे, मोक्ष की अभिलाषा से कर्मों के कारणों को दूर करे | पृष्ठाङ्क २५ तेरहवा सूत्र । २६ इस संसार में समय की प्रतीक्षा न करते हुए तत्काल ही बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थिको जान कर परित्याग करे; स्रोत को जान कर संयमाचरण करे, इस दुर्लभ नरदेहको पाकर किसी की भी हिंसा न करे | उद्देशसमाप्ति । ॥ इति द्वितीयोद्देशः ॥ ४२४ ४२४-४२५ ४२५ ४२६ ४२७ ४२७-४२८ ४२९ ४२७ ४२७ ४२९-४३० ४३१ ४३१-४३३
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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