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विषय
१५ आठवाँ सूत्र ।
१६ इन अन्यबधादिकों का सेवन करके इन्हें निस्सार समझ कर संयमाराधन में इनको निस्सार समझ कर ज्ञानी इनका १७ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र । १८ देव भी जन्ममरणशील होते हैं; इसलिये उनके सुख को भी नश्वर समझ कर श्रुतचारित्रधर्मका सेवन करो ।
भरतादि - जैसे कोई २ तत्पर हुए हैं । इसलिये सेवन नहीं करे ।
१९ दशम सूत्र ।
२० श्रुतचारित्र धर्म के आराधनमें तत्पर मुनि किसी की हिंसा न करे, न दूसरों से हिंसा करावे और न हिंसा करनेवाले की अनुमोदना ही करे ।
२१ ग्यारहवाँ सूत्र का अवतरण और ग्यारहवा सूत्र । २२ स्त्रियों में अनासक्त, सम्यग्ज्ञानदर्शन चारित्रके आराधन में तत्पर तथा पाप के कारणभूत कर्मों से निवृत्त मुनि वैषयिक सुख की जुगुप्सा करे ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
२३ बारहवाँ सूत्र |
२४ क्रोधादि का नाश करे, लोभ का फल नरक समझे, प्राणियों की हिंसा से निवृत्त रहे, मोक्ष की अभिलाषा से कर्मों के कारणों को दूर करे |
पृष्ठाङ्क
२५ तेरहवा सूत्र ।
२६ इस संसार में समय की प्रतीक्षा न करते हुए तत्काल ही बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थिको जान कर परित्याग करे; स्रोत को जान कर संयमाचरण करे, इस दुर्लभ नरदेहको पाकर किसी की भी हिंसा न करे | उद्देशसमाप्ति ।
॥ इति द्वितीयोद्देशः ॥
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