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________________ १३८ ___आचारागसूत्रे ये चारित्रविषयारतिमन्तस्ते चतुर्गतिकसंसारे दुःखसागरमग्नाश्चेतस्ततः परिभ्रमन्तीति दर्शयति-' अणाणाए'-इत्यादि । मूलम्-अणाणाए पुठ्ठावि एगे नियहांत, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिग्गहा भविस्सामो समुहायलद्धे कामे अभिगाहइ, अणाणाए मुणिणो पडिलेहंति, एत्थ मोहे पुणो पुणो सन्नानो हव्वाए नो पाराए ॥ सू०२॥ छाया—अनाज्ञया स्पृष्टा अप्येके निवर्तन्ते, मन्दा मोहेन प्रावृताः, अपरिग्रहा भविष्यामः, समुत्थाय लब्धान् कामानभिगाहते, अनाज्ञया मुनयः प्रत्युपेक्षन्ते, अत्र मोहे पुनः पुनः सन्ना नो हव्याय नो पाराय ॥ मू० २॥ टीका-'अनाज्ञये'-त्यादि, आज्ञा ज्ञानाचारादिप्रवृत्तिरूपो जिनादेशः, तद्विपरीता अनाज्ञा, तया स्पृष्टाः परीषहोपसर्गेश्चलितचेतसः, एके-कण्डरीकमभृतयो अर्थ होता है । इस का भाव यह है कि यथाख्यात चारित्र में जब इस जीव की रति-रमण-हो जाती है तब यह 'अ इ उ ऋल' इन पाँच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण करने में जितना समय लगता है उतने समय मात्र में सिद्ध गति को प्राप्त कर लेता है अर्थात्-संयम को निर्दोष रीति से पालने से थोडे ही काल में यह जीव मुक्तिका लाभ कर लेता है।सू०॥१॥ जिनकी चारित्र में रति नहीं है वे इस चतुर्गतिरूपसंसार सागर में दुःखों की अनन्त बोझे को झेलते हुए इतस्ततः भ्रमण करते रहते हैं। इस बात को सूत्रकार प्रकट करते हैं__ 'अणाणाए' इत्यादि । ज्ञानाचारादिकों में प्रवृत्ति करने रूप जो जिनेन्द्र भगवान् का आदेश है उसका नाम आज्ञा है इससे विपरीत ભાવ એ છે કે યથાખ્યાત ચારિત્રમાં જ્યારે આ જીવની રતિ-રમણ થાય છે, त्यारे ते 'अ इ उ ऋ ल' - पाय व सक्षराना अभ्या२५ ४२वामा सो સમય લાગે છે તેટલા સમય માત્રમાં સિદ્ધગતિને પ્રાપ્ત કરી લે છે. અર્થાત સંયમને નિર્દોષ રીતિથી પાળવાથી થેડા જ કાળમાં તે જીવ મુક્તિને લાભ કરી લે છે. સૂત્ર ૧ છે જેની ચારિત્રમાં રતિ નથી તે આ ચતુગતિરૂપ સંસારસાગરમાં દુઃખના અનંત બોજાને ઉઠાવતાં અહીતહીં ભ્રમણ કરે છે, એ વાતને સૂત્રકાર પ્રગટ કરે છે 'अणाणाए ' त्याहि. ज्ञानाच्यामा प्रवृत्ति ४२१॥ ३५ २ जिनेन्द्र ભગવાનને આદેશ છે તેનું નામ આજ્ઞા છે, તેનાથી વિપરીત પ્રવૃત્તિ અનાજ્ઞા છે. શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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