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________________ १८६ ॥ अथ तृतीयोदेशः॥ विषय पृष्ठाङ्क १ द्वितीय उद्देश के साथ तृतीय उद्देश का सम्बन्धप्रतिपादन। १६३ २ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । १६४ ३ पण्डित को उच्च कुलकी प्राप्ति से हर्ष नहीं करना चाहिये और न नीच कुलकी प्राप्तिसे क्रोध ही करना चाहिये । १६५-१७० ४ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र । १७१ ५ किसी भी प्राणीका अहित नहीं करना चाहिये । प्राणियों के ___ अहित करनेवालों की दुरवस्था का वर्णन । १७२-१८६ ६ तृतीय मूत्रका अवतरण और तृतीय मूत्र ।। ७ उच्चकुलाभिमानी मनुष्य प्राणियों का अहित करके जन्मान्तर में कोई अन्धता आदि फल पाकर सकलजननिन्दित होता हुआ, और कोई खेत-घर-धनधान्य-स्त्री आदि परिग्रहमें आसक्त हो तप आदिकी निन्दा करता हुआ विपरीत बुद्धिवाला हो जाता है। १८७-१९४ ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र । १९४ ९ संयमियों के कर्त्तव्य का निरूपण । १९५-२०६ १० पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र । २०७ ११ असंयमियों के जीवन स्वरूपका वर्णन । २०७-२१४ १२ छठे सूत्रका अवतरण और छठा मूत्र । २१४-२१५ १३ असंयमीका अन्यायोपार्जित धन नष्ट हो जाता है, और कुटुम्ब की चिन्ता से व्याकुल वह असंयमी कार्याकार्य को नहीं जानता हुआ विपरीतबुद्धियुक्त हो जाता है । २१५-२२१ १४ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवा सूत्र । २२१ १५ 'सुखको चाहनेवाला मूढमति असंयमी मनुष्य दुःखही भोगता है ' इस बातको भगवान महावीर स्वामीने स्वयं प्ररूपित किया है- इस प्रकार सुधर्मा स्वामी का कथन । २२२-२२६ १६ आठवें सूत्रका अवतरण और आठवा मूत्र । २२७ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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