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________________ १०० विषय १६ आठवें सूत्रका अवतरण और आठवां मूत्र। १७ वृद्धावस्थामें कोई रक्षक नहीं होता और बाल्यावस्था भी पराधीन होने के कारण दुःखमय ही है-ऐसा विचार कर युवावस्था को ही संयमपालन का योग्य अवसर समझना चाहिये । १०१-१२२ १८ नवम मूत्रका अवतरण और नवम सूत्र । १९ वार्धक्य और रोगों से जब तक श्रोत्रादि इन्द्रियों के परिज्ञान नष्ट नहीं हुए हैं, तभी तक चारित्रानुष्ठानमें प्रवृत्त हो जाना चाहिये। १२३-१२७ ॥ इति प्रथमोद्देशः ॥ १२२ * १२८ ॥ अथ रितीयोदेशः॥ १ प्रथम उद्देश के साथ द्वितीय उद्देश का सम्बन्धप्रतिपादन। २ प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र। १२९-१३० ३ संसारकी असारता को जाननेवाला मुनि संयमविषयक अरतिको दूर कर क्षणमात्रमें मुक्त हो जाता है। १३१-१३७ ४ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय मूत्र । १३८ ५ जिनाज्ञा से बहिर्भूत साधु मुक्तिभागी नहीं होता। १३९-१४४ ६ तृतीय मूत्रका अवतरण और तृतीय मूत्र । ७ ' अनगार' कौन कहलाते हैं। १४६-१५४ ८ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ मूत्र । १५४ ९ विषयासक्तिवश परितप्त होकर धन की स्पृहासे दण्डसमारम्भ करनेवाला मनुष्य का वर्णन । १५५-१५९ १० पञ्चम सूत्रका अवतरण और पश्चम सूत्र । १५९ ११ संयमी को दण्ड समारम्भ नहीं करना चाहिये । उद्देश समाप्ति । १६०-१६२ ॥ इति द्वितीयोदेशः॥ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006302
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size41 MB
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