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आचारागसूत्रे ___ वनस्पतिकर्मसमारम्भफलप्रदर्शनपुरस्सरं वनस्पतिसमारम्भेऽनेकत्रसस्थावरजीवहिंसाऽवश्यम्भाविनीति प्रदर्शितम् , संपति वनस्पतेः सचेतनत्वशङ्कायां तस्य मनुष्यशरीरवत् सचेतनत्वमस्तीति प्रदर्शयति-' से बेमि.' इत्यादि ।
यद्वा-यथा मनुष्यशरीरे चैतन्यं सुगमं, तथा वनस्पतिकायेऽपि, तस्माद् वनस्पतेर्मनुष्यशरीरसादृश्यं दर्शयति सूत्रकारः-'से बेमि.' इत्यादि ।
मूलम्-- से बेमि-इमंपि जाइधम्मयं एयपि जाइधम्मयं, इमपि बुढिधम्मयं एयंपि वुड्ढिधम्मयं, इमंपि चित्तमंतयं एयंपि चित्तमंतयं, इमपि छिण्णं मिलाइ एयंपि
वनस्पतिकाय के आरंभ का फल प्रगट करके यह भी प्रदर्शित कर दिया गया है कि-वनस्पतिकाय का आरंभ करने से अन्य त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा भी अवश्य होती है । अब वनस्पतिकाय के सचेतन होने में शंका होने पर उसकी मनुष्य शरीर के समान सचेतनता सूत्रकार प्रकट करते हैं-'से बेमि.' इत्यादि ।
___ अथवा--जैसे मनुष्यशरीर में चैतन्य को समझना सुगम हैं उसी प्रकार वनस्पतिकाय में भी । अत एव वनस्पति मनुष्यशरीर के समान है, यह बात सूत्रकार कहते हैं-'से बेमि.' इत्यादि।
मूलार्थ-वह मैं कहता हूँ-यह (मनुष्यशरीर) जन्मशील है, वह (वनस्पतिशरीर) भी जन्मशील है। यह वृद्धिशील है, वह भी वृद्धिशील है। यह सचित्त है वह भी सचित्त है । छेदने पर यह मुरझा जाता है, वह भी छेदने पर मुरझा जाता है।
વનસ્પતિકાયના આરંભનું ફળ પ્રગટ કરીને એ પણ પ્રદર્શિત કરી આપ્યું છે કેવનસ્પતિકાયને આરંભ કરવાથી અન્ય ત્રસ અને સ્થાવર જીવોની હિંસા પણ અવશ્ય થાય છે. હવે વનસ્પતિકાયની સચેતનતા હવામાં શંકા હોવાથી તેની સચેતના मनुष्यशरीरनी सन्यतनता समान सूत्रा२ प्रगट ४२ छ-' से बेमि.' त्याहि.
અથવા–-જેમ મનુષ્ય શરીરમાં ચિતન્યને સમજવામાં સુગમતા છે, તે પ્રમાણે વનસ્પતિકાયમાં પણ સુગમતા છે. એ માટે વનસ્પતિ મનુષ્ય શરીરના સમાન છે. એ વાત सूत्रा२ ४ छ:-" से बेमि.' त्याहि.
भूमाथ:-ते हुई छु'-॥ ( मनुष्य शरी२) मle छे ते (वनस्पतिશરીર) પણ જન્મશીલ છે, આ વૃદ્ધિશીલ છે, તે પણ વૃદ્ધિશીલ છે, આ સચિત્ત છેછેદવાથી તે સુકાઈ જાય છે, તે પણ છેદવાથી સૂકાઈ જાય છે. આ પણ આ હારક છે, તે
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧